यूपीएससी आईएएस और यूपीपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए उत्तर लेखन अभ्यास कार्यक्रम: पेपर - II (सामान्य अध्ययन-1: भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल तथा समाज) - 10, जनवरी 2020


यूपीएससी आईएएस और यूपीपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए उत्तर लेखन अभ्यास कार्यक्रम (Answer Writing Practice for UPSC IAS & UPPSC/UPPCS Mains Exam)


मुख्य परीक्षा पाठ्यक्रम:

  • प्रश्नपत्र-2: सामान्य अध्ययन-1: (भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल तथा समाज)

प्रश्न - भारत में दावानल (Forest Fire) के कारणों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट करें कि यह जलवायु परिवर्तन की समस्या को और विकराल रूप देने में किस प्रकार से उत्तरदायी है? ( 250 शब्द)

मॉडल उत्तर:

  • चर्चा में क्यों है?
  • प्रस्तावना
  • भारत में दावानल के प्रमुख कारण
  • जलवायु परिवर्तन को बढ़ाने में दावानल की भूमिका
  • निष्कर्ष

चर्चा में क्यों है?

हाल ही में प्रकाशित ‘‘इंडिया स्टेट ऑफ फारेस्ट रिर्पोट’’ (ISFR) के अनुसार, भारत में पिछले 14 वर्षों में दावानल से वनों का सर्वाधिक विनाश हुआ है।

प्रस्तावना -

  • वनों में दावानल एक सामान्य आपदा है। दावानल या वन की आग उस दुर्घटना को कहते हैं, “जब किसी वन के एक भाग में आग लग जाती हैं जो पुरे वन को अपने चपेट में ले लेती है जिससे उव क्षेत्र के सभी वन तथा जीव-जन्तु इत्यादि के जीवन का ह्रास हो जाता है”, दावानल न केवल वन संपदा के लिए वरन् संपूर्ण शासन व्यवस्था के लिए भी खतरा पैदा करता है। भारत की वन राज्य रिर्पोट के अनुसार, भारत में लगभग 40% वनों में दावानल का खतरा बना हुआ है।
  • ग्रीष्म माह में, लंबे समय तक वर्षा का अभाव होता है। वनों में सूखे पत्तों व लकड़ियों में थोड़ा सा भी घर्षण दावानल का कारण बन सकता है। दावानल से प्रकृति में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे जीव-जंतु तथा वन संपदा में कमी आती है जो जैव विविधता के लिए हानिकारक होती है।

भारत में दावानल के प्रमुख कारण

प्राकृतिक कारण -

  • झंझावत के दौरान प्राकृतिक रूप से तड़ित का वनों में गिरना, भारत में वनाग्नि का एक प्रमुख कारण माना जा सकता है। भारत में तड़ित के द्वारा दावानल की अनेक घटनायें घटित हुई हैं।
  • शुष्क मौसम में पर्वतीय क्षेत्रों में पत्थरों के घर्षण से वनों में आग लग सकती है।
  • बांस उत्पादन वाले क्षेत्रों में सूखे बांसों में आपसी घर्षण से वनों में आग लग जाती है।
  • ज्वालामुखी विस्फोटों से भी वनों में प्राकृतिक रूप से आग लग सकती है।

मानवीय कारण -

  • वनों में 90 प्रतिशत से अधिक आग मानवीय लापरवाही के कारण या फिर किसी दुर्घटना के कारण लगती है। इसे कुछ उदाहरणों के माध्यम से समझा जा सकता है।
  • स्थानांतरण कृषि - भारत के उत्तरपूर्व में वनों के विनाश का एक प्रमुख कारण जनजातियों द्वारा की जाने वाली स्थानांनतरित कृषि है। उदाहरण - झूम कृषि, जिसमें जनजातियों द्वारा किसी स्थान के वनों को जलाकर वहाँ कृषि की जाती है। कुछ समय पश्चात् दूसरे स्थान के वनों को जलाकर वहाँ कृषि की जाती है जिससे बड़ी संख्या में वन संपदा का ह्रास होता है।
  • कई बार ग्रामीणों द्वारा मार्ग को साफ करने के लिए वनों को जलाया जाता है यह आग कभी-कभी विनाशकारी बन जाती है।
  • कई बार वनों से नॉन-टिम्बर उत्पाद एकत्रित करने के लिए संग्राहकों द्वारा वनों को जलाया जाता है परन्तु कई बार यह आग विनाशकारी रूप ले लेती है।
  • सिगरेट, बीड़ी जैसे उत्पाद भी कई बार वनों की अग्नि को बढ़ाते हैं।
  • रात्रि के समय वनों से गुजरते समय प्रयोग की जाने वाली मशालें चीन, पाइन तथा शंकु धारी वनों में आग का कारण बन जाती हैं।
  • जंगली जानवरों के शिकार के लिए सामान्यतः जनजातियों द्वारा जंगली घासों को आग लगा दी जाती है।
  • मनुष्यों द्वारा विभिन्न त्योहारों पर आतिशबाजी का प्रयोग किया जाता है। जो वनों में आग लगने वाले मानवीय कारणों में से एक है।

जलवायु परिवर्तन को बढ़ाने में दावानल की भूमिका

  • दावानल जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारणों में से एक है। दावानल के दौरान वनों से निकलने वाली महीन कालिख जिसे ब्लैक कार्बन भी कहा जाता है, वायुमंडल में फैल जाती है जो ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को बढ़ाने में योगदान देती है।
  • दावानल वैश्विक कार्बन चक्र को प्रभावित करती है इससे जलवायु 3 मुख्य तरीकों से प्रभावित होती है -
  • सर्वप्रथम आग से बड़ी संख्या में कार्बनिक पदार्थों का उत्सर्जन होता है। जो वायुमंडल को प्रदूषित करता है।
  • द्वितीय, आग से जलने वाली वनस्पतियों का अपघटन होता है जिससे वायुमंडल में पुनः कार्बन का उत्सर्जन होता है।
  • तीसरा, जले हुये स्थानों पर उगने वाली नवीन वनस्पतियां वायुमंडल से उतने कार्बन का अवशोषण नहीं कर पाती हैं जितना वनस्पतियों के जलने तथा अपघटन से कार्बन का उत्सर्जन हुआ था।
  • सामान्यतः आग की आवृत्ति में वृद्धि से जीवमंडल में भंडारित होने वाले कार्बन में कमी आती है, और वायुमंडल में कार्बन की मात्रा में वृद्धि होती है। जिससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में वृद्धि होती है।

निष्कर्ष -

दावानल के कारण वनों के होने वाले विनाश पर तत्काल कार्यवाई किए जाने की आवश्यकता है। दावानल के कारण होने वाले विनाश को कम करने के लिए शीघ्र ही प्रभावशाली उपायों को स्वीकारने की आवश्यकता है। दावानल के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए अनुसंधान, प्रशिक्षण और विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

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