ब्लॉग : चीन भूटान सीमा समझौता और इसके भारत के लिए मायने by विवेक ओझा

भूटान और चीन के बीच हाल ही में कई वर्षों से चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक 'थ्री-स्टेप रोडमैप' के समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए हैं। चीन और भूटान के बीच सीमा विवाद को खत्म करने के लिए 1984 से अब तक 20 से अधिक दौर की वार्ता हो चुकी है। हाल के समय में भूटान के लिए चीन से सीमा विवाद को सुलझाने के लिए वार्ता बढ़ाने की जरूरत बढ़ गई थी जिसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं। पिछले साल जब भूटान के एक वन्यजीव अभयारण्य को ग्लोबल फाइनेंशियल फैसिलिटी के द्वारा वित्तीय सहायता देने का निर्णय लिया गया था तो ग्लोबल इन्वायरमेंट फैसिलिटी काउंसिल की 58वीं बैठक में चीन ने भूटान के सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य की जमीन को विवादित बताया। साथ ही इस पर अपने अधिकार का दावा करते हुए इस प्रोजेक्ट के लिए होने वाली फंडिंग का भी विरोध किया। भूटान ने चीन की इस हरकत का उस समय कड़ा विरोध किया था । भूटान ने कहा तब कहा था कि हम साफ कर देना चाहते हैं कि यह जमीन हमारे देश का अटूट हिस्सा है। वास्तविकता यह है कि इस वन्य जीव अभ्यारण्य की भूमि को लेकर चीन और भूटान के बीच कोई विवाद नही रहा है लेकिन दोनों देशों के बीच अभी भी सीमाएं निर्धारित नही होने की बात का फायदा चीन उठाने की कोशिश कर रहा था।   चीन का ऐसा दावा भारत के लिए भी चिंता का विषय बना था क्योंकि सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे भूटान के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में 650 वर्ग किमी में फैला राष्ट्रीय उद्यान है और यह अरुणाचल के सेला पास से करीब 17 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा पिछले साल सूचना इस बात की भी आई थी कि चीन ने भूटान में अपने गाँव तक स्थापित कर लिए हैं । इन बातों से स्पष्ट है कि भूटान के ऊपर चीन से सीमा विवाद के मुद्दे पर वार्ता का भी दबाव था और उसी के परिणामस्वरूप भूटान जो अब तक सामरिक , कूटनीतिक , आर्थिक फ्रंट पर चीन से दूरी बनाता रहा है , वह सीमा विवाद के समाधान के लिए वार्ता करने पर सहमत हुआ है। दरअसल भूटान चीन के साथ 400 किलोमीटर से अधिक लंबी सीमा साझा करता है।

जिन दो इलाक़ों को लेकर चीन और भूटान के बीच ज़्यादा विवाद है, उनमें से एक भारत-चीन-भूटान ट्राइजंक्शन के पास 269 वर्ग किलोमीटर का इलाक़ा और दूसरा भूटान के उत्तर में 495 वर्ग किलोमीटर का जकारलुंग और पासमलुंग घाटियों का इलाक़ा है। पश्चिमी भूटान में 269 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को लेकर भूटान और चीन के बीच जिन क्षेत्रों को लेकर सीमा विवाद रहा है उनमें शामिल हैं : डोकलाम , सिंचुलुंग , ड्रामाना और शाखातो। इन को लेकर चीन ने 1996 में भूटान के सामने विवाद निस्तारण का प्रस्ताव रखते हुए एक पैकेज डील का प्रस्ताव रखा था जिसके तहत चीन ने यह ऑफर किया था कि वह उत्तरी भूटान में पासामलुंग और जकारलुंग घाटियों पर अपने दावे त्याग का त्याग कर देगा अगर भूटान डोकलाम क्षेत्र को चीन को सौंप देता है। अब यदि सीमा विवाद सुलझाने के क्रम में फिर से भूटान चीन के इस प्रस्ताव पर विचार करता है और डोकलाम को चीन को सौंपने पर पर विचार करता है तो भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि डोकलाम पठार भारत के राज्य सिक्किम , भूटान की हा घाटी और तिब्बत के चुंबी घाटी के त्रिकोणीय बिंदु पर स्थित है। चीन भूटान से पैकेज डील के तहत डोकलाम का जो इलाक़ा मांग रहा है, वो भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के क़रीब है। डोकलाम से सिलीगुड़ी गलियारे की दूरी महज़ 80 किलोमीटर है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे चिकन्स नैक भी कहा जाता है, वो भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वो पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंचने के लिए भारत का मुख्य रास्ता है और अगर चीनी सिलीगुड़ी कॉरिडोर के क़रीब आते हैं तो यह भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय होगा क्योंकि यह पूर्वोत्तर राज्यों से कनेक्टिविटी के लिए ख़तरा बन सकता है। इसके अलावा भारत की ऊर्जा सुरक्षा और ऊर्जा व्यापार के लिहाज से भी चिकेन्स नेक की महत्वपूर्ण भूमिका है। चिकन नेक उस इलाके को कहते हैं जोकि सामरिक दृष्टि से किसी देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, लेकिन संरचना के आधार पर कमजोर होता है। सिलीगुड़ी ऐसा ही क्षेत्र है। डोकलाम से सिलीगुड़ी की दूरी महज 80 किलोमीटर है। 200 किलोमीटर लंबा व 60 किलोमीटर चौड़ा यह कॉरिडोर देश की सुरक्षा के लिए काफी अहम है।

चीन से हालिया तनाव होने के बाद केंद्र सरकार ने भारत के चिकन नेक कहे जाने वाले सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर अपना निर्माण कार्य तेज कर दिया है। जलपाईगुड़ी के पास तीस्ता नदी पर पुल का निर्माण किया जा रहा है। तीस्ता नदी पर नए पुल के बनाने की योजना के साथ ही वहीं, बंगराकोट से गंगटोक (सिक्किम) तक राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण ने भी रफ्तार पकड़ी ली है। सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा स्पष्ट किया जा चुका है कि जलपाईगुड़ी के समीप तीस्ता नदी पर दूसरे पुल (राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-27) का निर्माण अंतिम चरण में है।

तीन साल पहले भूटान के डोकलाम सड़क निर्माण को लेकर चीन व भारत में विवाद बढ़ गया था। डोकलाम में यदि चीन सड़क बनने में कामयाब होता है तो सिलीगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) तक उसकी पहुंच आसान हो जाएगी। इस कॉरिडोर के बंद होने से भारत का संपर्क पूर्वोत्तर राज्यों से पूरी तरह से कट जाएगा। सामरिक दृष्टि से यह इलाका भारत बेहद अहम है, इसलिए सरकार डोकलाम में सड़क निर्माण में सख्त खिलाफ है।

दरअसल भारत और भूटान के बीच जिस तरीके से मजबूत द्विपक्षीय संबंध दिखाई दिए हैं उस में खलल डालने की कोशिश चीन करता रहा है भूटान चीन की विस्तार वादी नीतियों का समर्थन नहीं करता वह वन बेल्ट वन रोड इनीशिएटिव कभी समर्थन नहीं करता भूटान ने चीन के साथ कूटनीतिक राजनयिक संबंध नहीं बनाए हैं और चीन का कोई स्थाई दूतावास या कॉन्स्युलेट ऑफिस भूटान में नहीं है और चीन चाहता रहा है कि भूटान उससे आर्थिक सहायता ले , ऋण ले , अपने यहा अवसंरचना विकास में साझेदार बनाये जिससे भारत के ऊपर दबाव बनाया जा सके। मुद्दा यह है कि भूटान ने भारत को अपने सबसे बड़े ट्रेड पार्टनर और डेवलपमेंट पार्टनर के रूप में हमेशा से वरीयता दी है और यह बात चीन को बुरी लगती है । भूटान में भारत के हाई इम्पैक्ट कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स को विश्वास की नज़र से देखा जाता है जबकि चीन के किसी भी प्रस्ताव को सौदेबाजी या संदेह की नज़र से देखा जाता है।

कोरोना वैक्सीन के मुद्दे पर भारत को ...

आठ लाख की आबादी वाले देश भूटान की अर्थव्यवस्था बहुत छोटी है। वह काफी हद तक भारत को होने वाले निर्यात पर ही निर्भर है। वर्ष 2000 से 2017 के बीच भूटान को भारत से बतौर सहायता लगभग 4.7 बिलियन डालर मिले, जो भारत की कुल विदेशी सहायता का सबसे बड़ा हिस्सा था। वर्ष 1961 में भारत के सीमा सड़क संगठन द्वारा शुरू किया गया प्रोजेक्ट दंतक किसी विदेशी धरती पर राष्ट्र निर्माण के लिए शुरू किया गया सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है। भारतीय सहायता से ही भूटान के तीसरे नरेश जिग्मे दोरजी वांगचुक ने भूटान योजना आयोग की नींव रखी थी और तब से भारत भूटान में चलने वाली योजनाओं के लिए आर्थिक सहायता देता रहा है, ताकि संसाधनों की कमी के कारण भूटान का विकास न रुके। अब तक भारत सरकार ने भूटान में कुल 1416 मेगावाट की तीन पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण में सहयोग किया है और ये परियोजनाएं चालू अवस्था में हैं तथा भारत को विद्युत निर्यात कर रही हैं। भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। वर्ष 2018 में दोनों देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार 9228 करोड़ रुपए का था। इसमें भारत से भूटान को होने वाला निर्यात 6011 करोड़ रुपए तथा भूटान से भारत को होने वाला निर्यात 3217 करोड़ रुपए दर्ज किया गया।

भारत और भूटान के बीच वर्तमान द्विपक्षीय वार्षिक व्यापार 1144 मिलियन डॉलर ( 2019-20 वित्त वर्ष ) है जो कि भूटान के कुल व्यापार के 85 प्रतिशत से भी अधिक है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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