ब्लॉग : मालदीव में सफल होती इंडिया फर्स्ट पॉलिसी by विवेक ओझा

कहते हैं कि परसेप्शन मैनेजमेंट देशों की विदेश नीति खासकर भारत की विदेश नीति में अहम भूमिका निभाने लगा है। इस नीति के तहत भारत किसी दूसरे देश में इस प्रकार की कार्यवाहियों को अंजाम देता है,  जिससे वहां की आम जनता वहां का समाज और सांस्कृतिक समुदाय भारत से भावनात्मक रूप से जुड़ सके और भारत की नीतियों और पहलों को समर्थन दे सके। लेकिन यहां एक चुनौती यह देखी जाती है की किसी देश में वहां के राजनीतिक दलों के कुछ नेता अपने निहित स्वार्थों के लिए स्थानीय जनता के मन में भारत विरोधी भावनाएं भरने का प्रयास करते हैं,  आम जनता के मन में भारत के प्रति ईर्ष्या , घृणा,  द्वेष,  पूर्वाग्रह की भावना भरने का प्रयास करते हैं।  ऐसे में यह बहुत कठिन हो जाता है कि भारत किसी देश की जनता का विश्वास अपने राष्ट्रीय हितों, क्षेत्रीय हितों , समुद्री हितों  के लिए कैसे जीते।  इसका तोड़ निकालने के लिए भारत सरकार ने अपनी विदेश नीति में कूटनीति के नए नए रूपों को इजाद किया है जिसके जरिए किसी देश के शीर्ष नेतृत्व जैसे राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री,  रक्षा मंत्री ,विदेश मंत्री,  तीनों सेनाओं के प्रमुख आदि को भारत के हितों की दिशा में सोचने के लिए विवश करना,  टू प्लस टू वार्ता जैसे उपायों को मजबूती देना,  ट्रेक 1.5 डिप्लोमेसी,  आईलैंड डिप्लोमेसी अथवा ओशनिक डिप्लोमेसी के जरिए काम करना शामिल है जिसके प्रभावी परिणाम भारत को मिलने शुरू भी हो गए हैं। पड़ोसी देश मालदीव में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पड़ोसी प्रथम की नीति रंग लाती दिखाई दे रही है क्योंकि एक तरफ जहां हाल ही में मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम सोलेह ने मालदीव में  "इंडिया आउट कैम्पेन"  पर प्रतिबंध लगा दिया है और साफ तौर पर कह दिया है कि इंडिया आउट कैम्पेन मालदीव की राष्ट्रीय सुरक्षा और साथी क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए एक खतरा है। वहीं दूसरी तरफ़ भारत के नए चीफ ऑफ नेवल स्टाफ ने अपना पदभार ग्रहण करते ही अपनी पहली यात्रा मालदीव की की है और इस यात्रा के दौरान भारत और मालदीव के द्वारा पहला संयुक्त नेविगेशन चार्ट ( नौगमन चार्ट ) लांच किया गया है।

इन दोनों घटनाक्रमों के प्रभावों पर चर्चा करने के पहले यह जरूरी हो जाता है कि मालदीव में इंडिया आउट  कैम्पेन की पृष्ठभूमि समझ ली जाये।  मालदीव के राष्ट्रपति ने मालदीव में इंडिया आउट कैम्पेन पर प्रतिबंध लगाने का एग्जीक्यूटिव ऑर्डर हाल में देते हुए साफ तौर पर कह दिया है कि इंडिया आउट कैम्पेन मालदीव की राष्ट्रीय सुरक्षा और साथ ही क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए एक खतरा है। मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सोलेह ने वहां के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के भारत विरोधी अभियानों को सफल न होने देने का मजबूत फैसला कर लिया है। मालदीव का कहना है कि मालदीव के संविधान के तहत विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सब को मिली हुई है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि किसी महत्वपूर्ण पड़ोसी राष्ट्र के खिलाफ जहर उगला जाए और उसके खिलाफ षडयंत्र किया जाए। इंडिया आउट कैंपेन को मालदीव ने फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन और साथ ही डेमोक्रेटिक वैल्यूज का उल्लंघन कहा है। इस मामले में मालदीव की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल ने हाल ही में निर्णय करते हुए कहा है कि इंडिया आउट कैम्पेन जैसे अभियान भारत के खिलाफ घृणा की भावना को भड़काते हैं ।

दरअसल इंडिया आउट कैम्पेन हाल ही में तब शुरू हुआ था जब मालदीव के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन जो चीन समर्थक नेता माने जाते हैं,  की जेल से रिहाई हुई और उन्होंने अपने समर्थकों के साथ यह कहना शुरू किया कि इब्राहिम सोलेह सरकार नई दिल्ली के हाथों में एक कठपुतली है और मालदीव भारत सरकार को अपने समुद्री क्षेत्रों में नौसैनिक अड्डे बनाने की सुविधा देकर इस द्वीपीय देश में भारत की सैन्य उपस्थिति को बढ़ावा दे रहा है। वहीं दूसरी तरफ मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम सोलेह ने 2018 में राष्ट्रपति बनने के साथ ही " इंडिया फर्स्ट कैम्पेन"  को अपनाया था। यहां इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि जब 1965 में मालदीव ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन से आजाद होकर एक स्वतंत्र देश बना था , तो भारत पहला देश था जिसने मालदीव को राजनीतिक और राजनयिक मान्यता प्रदान किया था,  और इसी के चलते 1970 में ही मालदीव शासन ने " इंडिया फर्स्ट पॉलिसी"  को अपनाया था लेकिन कालांतर में चीन समर्थक नेताओं के मालदीव के सत्ता पर काबिज होने के साथ ही इंडिया फर्स्ट पॉलिसी को झटका लगा लेकिन भारत ने हाल के समय में दृढ़ इच्छाशक्ति बना ली है कि किसी भी हालत में मालदीव को भारत विरोधी तत्वों से गुमराह नहीं होने दिया जाएगा । मालदीव के साथ संबंधों में इस स्तर के विश्वास को पैदा किया जाएगा कि मालदीव को अपना सच्चा हित भारत से जुड़ने में ही नजर आएगा।

प्रोग्रेसिव कांग्रेस कोएलिशन जो कि अब्दुल्ला यामीन के पॉलिटिकल कैंप का प्रतिनिधित्व करने वाला घटक है,  ने राष्ट्रपति इब्राहिम सोलह के इंडिया आउट कैंपेन पर प्रतिबंध लगाने वाली डिक्री को असंवैधानिक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर करार देते हुए निंदा की है। इन विरोधी दलों का कहना है कि इब्राहिम सोलह ने मालदीव में इंडियन मिलिट्री फोर्सेस की बढ़ती हुई उपस्थिति का विरोध करने वाली विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया है। अब्दुल्ला यामीन के पॉलिटिकल कैंप के लोगों का कहना है कि मालदीव के राजनीतिक इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि एक निर्वाचित राष्ट्रपति ने अपने लोगों की आवाज को अनसुना कर  फॉरेन मिलिट्री की उपस्थिति को मजबूती देने के लिए काम करने का निर्णय किया है। वहीं दूसरी तरफ़ भारत समर्थक दल और नेता भी इस विषय पर सक्रिय दिखे। अभी हाल ही में मालदीव की संसद मजलिस में मालदीव के भूतपूर्व राष्ट्रपति और संसद के भूतपूर्व अध्यक्ष और भारत समर्थक नेता मोहम्मद नशीद ने कहा था कि अब्दुल्ला यामीन के निवास के बाहर "इंडिया आउट " के जो भी बैनर लगे हैं उन्हें वहां से हटाया जाना चाहिए और मीडिया रिपोर्ट तो यह बताते हैं कि मालदीव पुलिस ने उसके बाद तुरंत ही ऐसे बैनर वहां से हटा भी दिए। 

क्या है मालदीव की इंडिया फर्स्ट पॉलिसी:

मालदीव भारत को एक जिम्मेदार और मुश्किल की घड़ी में सबसे पहले काम में आने वाले राष्ट्र के रूप में मानता है। मालदीव के शीर्ष नेतृत्व कई अवसरों पर इस बात का उल्लेख कर चुके हैं कि 1988 में ऑपरेशन कैक्टस के जरिए भारत ने मालदीव को सैन्य सहायता प्रदान की थी,  2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के बाद भारत पहला देश था जिसने त्वरित गति से मालदीव को मदद पहुंचाई थी और 2014 में जब मालदीव में गंभीर जल संकट की स्थिति हुई तो भारत ने ऑपरेशन नीर के जरिए हवाई मार्ग से मालदीव को जल उपलब्ध कराया। मालदीव की सरकार चीन की तुलना में भारत का अपने प्रति सद्भाव और सहयोग की भावना और उसका स्तर जानती है मालदीव को पता है कि भारत ने अपने पड़ोसी प्रथम की नीति में मालदीव को महत्वपूर्ण स्थान दिया है भारत ने अपने सागर विजन , सागरमाला , प्रोजेक्ट मौसम में मालदीव को अभिन्न भाग के रूप में देखा है और इसके साथ ही भारत हाई इंपैक्ट कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट ( शिक्षा , स्वास्थ्य , अवसंरचना आदि क्षेत्रों में ) के जरिये लगातार मालदीव के  सशक्तीकरण पर काम करता आया है और यही कारण है कि मालदीव की वर्तमान सरकार ने इंडिया फर्स्ट पॉलिसी को अपनाया है जिसका मतलब है कि भारत की कंपनियों का मालदीव में निवेश बढ़े,  भारत और मालदीव के मध्य समुद्री और प्रतिरक्षा साझेदारी बढ़े,  मालदीव के विकास में भारत एक सामरिक साझेदार के रूप में काम करें और मालदीव की अर्थव्यवस्था और उसके शासन तंत्र को मजबूती देने में भारत की सभी भूमिकाएं स्वागत योग्य होंगी। पहले स्थिति यह थी कि अब्दुल्ला यामीन के शासनकाल में चीनी निवेश को मालदीव में बढ़ाने के लिए कानून बनाए जाते थे , मालदीव मैं नौसैनिक अड्डे और कोस्टल रडार सिस्टम को लगाने में चीन को तरजीह दी जाती थी , मालदीव चीन से अधिक ऋण भी लेता था और यामीन के समय में ही मालदीव ने चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता भी किया था यानी उस समय चाइना फर्स्ट पॉलिसी काम कर रही थी और अब जबकि मालदीव में चीन के प्रभाव में कमी आई है तो वहां भारत विरोधी तत्वों को यह बात हजम नहीं हो रही है और वह भारत के लिए हर प्रकार के षडयंत्र करने के लिए इच्छुक भी है और उत्सुक भी। 

मजबूत होती इंडिया फर्स्ट पॉलिसी : 

भारत के नए चीफ ऑफ नेवल स्टाफ मैं अपना पदभार ग्रहण करते ही अपनी पहली यात्रा मालदीव की की है । 18 से 20 अप्रैल को हुई अपनी यात्रा में उन्होंने मालदीव के राष्ट्रपति , विदेश मंत्री , रक्षा मंत्री और चीफ ऑफ डिफेंस फोर्स से मुलाकात हुई। 

भारत ने मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स कोस्ट गार्ड फ्लीट के रखरखाव और मरम्मत के लिए लगातार मदद देना जारी रखा है जिसका परिणाम है कि आज मालदीव भारत के साथ हिंद महासागर की सुरक्षा और खासकर हिन्द महासागर  की सिक्योरिटी और प्रोस्पेरिटी के लिए एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में खड़ा दिखाई दे रहा है । भारत की किसी भी प्रकार की कूटनीति और आर्थिक सहायता या मदद देने की रणनीति के पीछे एक महत्वपूर्ण उद्देश्य पड़ोसी देश को एक जिम्मेदार राष्ट्र बनाना रहा है कई अवसरों पर भारत को इसमें सफलता नहीं मिल पाई लेकिन भारत ने अपने इस प्रयास को नहीं छोड़ा और दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसी राष्ट्रों के लिए मानव संसाधन विकास रणनीति को अपनी विदेश नीति के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में अपनाया जिसका मतलब यह है की भारत अपने पड़ोसी देशों खासकर मालदीव श्रीलंका बांग्लादेश नेपाल और भूटान के सिविल सर्वेंट्स पुलिस अधिकारियों नेवी कोस्ट गार्ड और ज्यूडिशरी से जुड़े अधिकारियों को प्रशिक्षण देकर क्षमता निर्माण और कौशल विकास के लिए लगातार काम करता रहा है।

भारत के चीफ ऑफ नेवल स्टॉफ की इस यात्रा के दौरान भारत और मालदीव के द्वारा पहला संयुक्त नेविगेशन चार्ट ( नौगमन चार्ट ) लांच किया गया है। इसके साथ ही भारत ने मालदीव  नेशनल डिफेंस को  मजबूती प्रदान करने के लिए हाइड्रोग्राफिक उपकरण भी इधर बीच सौंप दिये हैं। चीफ ऑफ नेवल स्टाफ ने मालदीव के सामुद्रिक परिसंपत्तियों को देखने के लिए भी अलग-अलग स्थलों का भ्रमण किया जिससे यह साफ जाहिर होता है कि भारत और मालदीव समुद्री सुरक्षा संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाना चाहते हैं और यह हिंद महासागर और साथ ही दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप के सुरक्षा और विकास की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण कदम होगा। गौरतलब है कि भारत और मालदीव के बीच में हाइड्रोग्राफिक कोऑपरेशन के लिए मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग पर हस्ताक्षर हो चुका है और इसीलिए मालदीव के समुद्री क्षेत्र में हाइड्रोग्राफिक सर्वे के लिए भारत के आईएनएस सतलुज को तैनात किया गया। मालदीव की सामुद्रिक
परिसंपत्तियों को भारतीय नौसेना और मालदीप की नौसेना के कर्मचारियों द्वारा संयुक्त रुप से सुरक्षा प्रदान की जा रही है। 

हिंद महासागर में भारत और मालदीव के साझे समुद्री हित हैं और दोनों को एक समान मुद्दे प्रभावित भी करते हैं । इसीलिए दोनों राष्ट्रों ने कई संस्थाओं के तत्वावधान में अपने संबंधों को मजबूती दी है जैसे इंडियन ओशन नेवल सिंपोजियम और कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव। भारत ने मालदीव के साथ व्हाइट शिपिंग एग्रीमेंट किया है। मालदीव राष्ट्रीय सुरक्षा तटरक्षक बल सिफावारु बंदरगाह के विकास, सहयोग व रखरखाव में भारत मदद देगा। अप्रैल 2013 में मालदीव द्वारा किए निवेदन के तहत उसके द्वीपों व आर्थिक क्षेत्रों में नियंत्रण व निगरानी के लिए भारत उसके रक्षाबलों को मदद देगा। इसके अलावा मालदीव की तटरक्षा क्षमता व सुविधाओं के विकास के लिए भारत मानवीय मदद व आपात राहत मुहैया करवाएगा। भारत मालदीव के दूसरे बड़े शहर अद्दू में सड़कें बनाने में भी मदद देगा। इस प्रकार के आठ प्रोजेक्ट पर दोनों देश साथ काम करेंगे।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


ध्येय IAS के अन्य ब्लॉग