ब्लॉग : पिछले 7 वर्षों की यात्रा में कहां खड़ी है आज भारत की विदेश नीति by विवेक ओझा

आज तेज गति से बदल रही क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति के दौर में इस बात पर चर्चा करनी बहुत जरूरी है कि भारत वैश्विक मंच पर किस हद तक अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा कर पाया है , क्या भारत की विदेश नीति में वो बार्गेनिंग स्किल्स विकसित हुई हैं जिनसे वो अपने विरोधियों को प्रति संतुलित कर पाया है ? क्या भारत कई देशों के साथ लगातार बढ़ रहे अपने व्यापारिक घाटे को पाटने के लिए कुछ निर्णायक कदम उठाने का साहस जुटा पा रहा है । ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब खोजने पर ही पता चल पाता है कि हमने पिछले 7 वर्षों में विदेश नीति के स्तर पर क्या हासिल किया है। पिछले 7 वर्षों में भारत की विदेश नीति का मूल्यांकन करें , तो बहुत सी महत्वपूर्ण बातें सामने आती हैं।

पहला , विदेश नीति का सबसे बड़ा लक्ष्य राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा है और पिछले 7 वर्षों में भारत की विदेश नीति को नई चुनौतियों के साथ नए आयाम , उद्देश्य मिले हैं और कई अवसरों पर भारतीय विदेश नीति ने अभूतपूर्व उपलब्धि भी हासिल की है। सबसे पहले देखें तो भारत की विदेश नीति ने अपनी पड़ोसी प्रथम की नीति के तहत बहुत कुछ नया सीखा है । पाकिस्तान और नेपाल को छोड़ दें तो सभी दक्षिण एशियाई देशों के साथ भारत का सहयोग और द्विपक्षीय संबंध मजबूत हुआ है और आज मालदीव और श्रीलंका जैसे राष्ट्र जो कभी चीन के अधिक प्रभाव में थे , इंडिया फर्स्ट पॉलिसी के तहत कार्य करने लगे हैं। इसके साथ ही भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा एक्सटेंडेड नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के तहत दक्षिण एशियाई देशों के अलावा आसियान और पश्चिम एशिया , मंगोलिया , हिन्द महासागर क्षेत्र, इंडियन ओशेन रिम एसोसिएशन , खाड़ी देशों खासकर संयुक्त अरब अमीरात , बिम्सटेक देशों , मेकाँग गंगा सहयोग के देशों को पड़ोसी के रूप में देखने का जो विजन दिया गया है , उसी का प्रभाव है कि आज दक्षिण पूर्वी एशियाई और पश्चिम एशियाई देश चीन , पाकिस्तान , व्यापार वाणिज्य और महासागरीय सुरक्षा के मुद्दों पर भारत के साथ खड़े हैं । मंगोलिया जैसे देश ने जिसके साथ भारत का असैन्य नाभिकीय सहयोग समझौता भी हो चुका है , ने अपने थर्ड नेबर पॉलिसी के तहत भारत को अपने तीसरे पड़ोस का दर्जा दे दिया है। वहीं सऊदी अरब और यूएई जैसे देश पाकिस्तान को सबक तक सिखाने के कदम उठाते देखें गए हैं। ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉन्फ्रेंस की बैठक में मालदीव द्वारा भारत का पक्ष लेना भी ऐसा ही कदम है। धारा 370 के उन्मूलन , पीओके पर आक्रामक नीति , एफएटीएफ में पाकिस्तान को आतंकी वित्त पोषण के मुद्दे पर घेरना , सिंधु जल तंत्र के पूर्वी नदियों के जल प्रवाह को नियंत्रित करने , सर्जिकल स्ट्राइक जैसी पहलों के जरिए भारत पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर अलग थलग करने में पहली बार सफल रहा है। ओआईसी के लगभग सभी प्रभावी मुस्लिम देश पाकिस्तान की उपेक्षा करना सीख गए हैं । यह भारत की अरब विश्व के प्रति एक ठोस नीति का परिचायक है। लेकिन अब अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से पाकिस्तान इस खुशफहमी में आ गया है कि अफगान तालिबान समेत इस्लामिक सहयोग संगठन और इस्लामिक विश्व के कई देश उसके पक्ष में आ गए हैं जबकि ऐसा नही है , पाकिस्तान का इस्तेमाल हो रहा है , वो बिक रहा है और ऐसा नही है कि उसे अपनी वास्तविक स्थिति पता नहीं है।

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दूसरा , भारत ने सागरों और महासागरों की सुरक्षा को विश्व और क्षेत्रीय राजनीति में एक नया आयाम दिया है । भारत ने हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर में नौ गमन की स्वतंत्रता , महत्वपूर्ण वाणिज्यिक समुद्री मार्गों से अबाधित आवाजाही को एक नया वैश्विक आंदोलन बना दिया है जिसमें उसे अमेरिका , जापान , ऑस्ट्रेलिया समेत आसियान , पूर्वी एशियाई और अफ्रीकी देशों का सहयोग मिला है । यही कारण है कि 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा एक्ट ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत की गई जिसका उद्देश्य एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति , स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देना था । इस पॉलिसी में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ सहयोग के अलावा एशिया पैसिफिक के अन्य देशों के साथ सहयोग , समन्वय पर बल दिया गया । इस पॉलिसी के तहत एक अपरिहार्य हिस्से के रूप में भारत ने जापान की पहचान की और यही कारण है कि वर्ष 2015 में दोनों देशों ने "जापान भारत विजन 2025 विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी " की घोषणा की जिसका मुख्य उद्देश्य हिन्द प्रशांत क्षेत्र और विश्व में शांति और समृद्धि के लिए काम करना है । अमेरिका की इंडो पैसिफिक स्ट्रेटजी और क्वाड सुरक्षा समूह से अपने गठजोड़ के चलते भारत आज भारतीय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में महासागरीय संप्रभुता की सुरक्षा को एक वैश्विक महत्व का मुद्दा बनाने में लगा है और इसका परिणाम यह मिला है कि  जर्मनी ने हिंद प्रशांत क्षेत्र के लोकतांत्रिक देशों के साथ भागीदारी मजबूत करने के लिए नई इंडो पैसिफिक पॉलिसी बनाई है जिसका समर्थन भारत, जापान और आसियान देशों ने कर दिया है। भारत ने इसी वर्ष यानि 2021 में ही फ्रांस के इंडियन ओशेन रिम एसोसिएशन के 23 वें पूर्ण सदस्य बनने का स्वागत किया है और इसे हिन्द प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना है। इसी वर्ष फ्रांस के नेतृत्व में बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में क्वाड संगठन के नौसैनिक अभ्यास के आयोजन को भी भारत ने हिन्द महासागर क्षेत्र की सुरक्षा के लिए एक अभूतपूर्व शुरुआत कहा है।

इसी के साथ यह भी सच है कि दुनिया चाहती है भारत सागरीय सुरक्षा का प्रतिनिधि बने। कोई भी पद ओहदा किसी जिम्मेदार व्यक्ति या संस्था को मिले तभी उस पद की कीमत वसूल हो सकती है। समुद्री जहाजों की डकैती और समंदर में सशस्त्र लूट के खिलाफ कार्यवाही के लिए एशिया का एक ऐसा ही 21 सदस्य देशों वाला क्षेत्रीय समझौता है जिसे एक क्षेत्रीय संगठन के रूप में भी देखा जाता है । इसी का एक जिम्मेदारी भरा पद है एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर। यह पद हाल ही में मिला है भारत के कोस्ट गार्ड के महानिदेशक के. नटराजन जी को । अब भारतीय उम्मीदवार से अधिक जिम्मेदार भला कौन हो सकता था । मात्र 4 वोट मिले चीन को और भारत को 21 में से 14 वोट। ये इस बात का सबूत है कि जब भी वर्क एथिक्स की बात वैश्विक मुद्दों पर आती है तो भारत का नाम सबसे ऊपर आता है।

तीसरा , भारत ने पिछले 7 वर्षों में विश्व के अलग अलग हिस्सों के लिए विशिष्ट नीति बनाई है । मध्य एशियाई देशों से ऊर्जा सुरक्षा और सामरिक गठजोड़ के लिए कनेक्ट सेंट्रल एशिया पॉलिसी , एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी के तहत रूस के सुदूर पूर्व में विकास गठजोड़ , सागर विजन से एक कदम आगे जाते हुए रूस के साथ दक्षिणी चीन सागर में वैकल्पिक व्यापारिक मार्ग खोलने, 2018 में इजरायल के साथ पहली बार सामरिक साझेदारी समझौता करने का कार्य किया गया है । भूटान चीन के प्रभाव में न आये , इसके लिए भारत ने दिसंबर 2020 में भूटान के लिए चार नए भारतीय व्यापारिक मार्गों : नागरकाटा पोर्ट , अगरतला , पांडु और जोगीघोपा बंदरगाह व्यापारिक मार्ग को खोला है। भारत को दक्षिण एशिया और अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र की शांति , स्थिरता , विकास में भूटान की अहमियत का पता है इसलिए भारत चाहता है कि भूटान विश्व की महत्वपूर्ण शक्तियों से आर्थिक , राजनयिक और सामरिक स्तर पर जुड़े और इसी क्रम में भारत में भूटान के राजदूत और जर्मनी के राजदूत ने 25 नवंबर , 2020 को नई दिल्ली में भूटान और जर्मनी के मध्य कूटनीतिक संबंध स्थापित करने की घोषणा की । चूंकि जर्मनी को अब हिन्द प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण प्लेयर माना जा रहा है इसलिए अब भारत को अपने एक्ट ईस्ट पालिसी के लिए भूटान और जर्मनी का साझा समर्थन मिलना भी आसान हो जाएगा। एक और महत्वपूर्ण घटनाक्रम के बारे में अवगत होना यहाँ जरूरी है । दिसंबर , 2020 में ही नई दिल्ली स्थित इजरायली दूतावास में भूटान और इजरायल ने अपने औपचारिक कूटनीतिक संबंधों को निर्मित करने की घोषणा की । यानि कि भारत की सरजमीं पर पिछले साल भूटान के दो महत्वपूर्ण देशों के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए हैं जिनमें भारत की महत्वपूर्ण भूमिका है।

इसी साल पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में भारत के राजनय को अधिक मजबूती देने और अपेक्षित परिणामों की प्राप्ति के लिए पिछले 18 वर्षो में पहली बार ऐसा हुआ है कि जब किसी भारतीय विदेश मंत्री ने ग्रीस की यात्रा की है। ग्रीस के साथ भारत के रिश्ते मजबूत हों, इसके लिए भारत सरकार के मन में यह चल रहा था कि ग्रीस के साथ भारत के संबंधों को सामरिक साझेदारी के स्तर पर पहुंचाया जाए और हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री की ग्रीस यात्रा के दौरान दोनों देशों में यह सहमति बनी भी कि वर्तमान विश्व और क्षेत्रीय राजनीति की भू-राजनीतिक, भू-सामरिक और भू आर्थिक सच्चाइयों को देखते हुए दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी की जाए।

चौथा , एक्ट ईस्ट फोरम के जरिए जापान को उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों के विकास और सुरक्षा कार्यों में संलग्न कराने, भूटान को विशेष अनुदान , सहायता देकर उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों विशेषकर असम , अरुणाचल और सिक्किम की सुरक्षा में सहयोगी बनाने , बांग्लादेश को उत्तर पूर्वी भारत के त्रिपुरा से विशेष रूप से जोड़ने में भारत सफल रहा है और यह चीन से उत्तर पूर्वी भारत के प्रादेशिक अखंडता को बचाने की एक उत्कृष्ट नीति रही है। भारत ने दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों को दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर अपने सहयोगी देश होने का प्रमाण कई अवसरों पर देकर वियतनाम और फिलीपींस जैसे देशों का विश्वास जीता है । कंबोडिया और फिलीपींस ने हाल में भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते का भी प्रस्ताव कर दिया है। चीन को अफ्रीका में जवाब देने के लिए भारत और जापान का गठजोड़ मजबूत हुआ है। दोनों देशों ने अफ्रीकी महाद्वीप के देशों में गुणवत्तापूर्ण अवसंरचनाओं के विकास के लिए एशिया अफ्रीका इकोनॉमिक कॉरिडोर का भी गठन कर रखा है जिसे चीन के वन बेल्ट वन रोड पहल का सकारात्मक जवाब माना जाता है। वहीं यूरोप की बात करें तो ग्रीस यूरोप में चीन का महत्वपूर्ण आर्थिक सामरिक सहयोगी रहा है। दोनों देशों के बीच रिश्ते हाल के वर्षो में काफी मजबूत हुए हैं। यूरोप में चीन के ‘बेल्ट रोड’ पहल की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में ग्रीस है। ग्रीस ने अपने पीरियस बंदरगाह को चीन द्वारा संचालित करने की मंजूरी भी दे दी है। चीन के शिपिंग फर्म कोस्को को 2016 में इस बंदरगाह में सर्वाधिक हिस्सेदारी भी मिली थी। यह बंदरगाह एशिया और यूरोपीय महाद्वीपों के मध्य सामरिक महत्व की जगह पर अवस्थित है। भारत के विदेश मंत्री ने ग्रीस के विदेश मंत्री के साथ इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र, साइप्रस और लीबिया में घटित घटनाओं पर चर्चा की और क्षेत्रीय स्थिरता के प्रयासों को खोजने पर बल दिया। दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि विधि के शासन, संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता के प्रति सम्मान के महत्व को राष्ट्र समङों। कट्टरता, हिंसक उग्रवाद, आतंकवाद और खासकर सीमा पार आतंकवाद के द्वारा सामने आए खतरों की गंभीरता पर दोनों देशों ने बात की और सहमत हुए कि इस संबंध में मिल-जुल कर कार्य करने की जरूरत है।

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पांचवा , भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा और वैश्विक आपदा प्रबंधन में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है । इंटरनेशनल सोलर एलायंस और ग्लोबल कोलिशन ऑन डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर के बाद अब भारत ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड का प्रस्ताव कर चुका है । वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड का यह भारतीय विचार चीन के ओबोर का एक नैतिक प्रतिकार है। हाल ही में जब भारत के विदेश मंत्री द्वारा ग्रीस से चर्चा शुरू हुई तो उसके कुछ सकारात्मक परिणाम निकल कर आए। सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह आया कि ग्रीस ने भारत के नेतृत्व वाले ‘इंटरनेशनल सोलर अलायंस’ में शामिल होने की घोषणा की। ग्रीस का यह निर्णय इस लिहाज से अहम है कि इससे चीन के साथ ग्रीस के एनर्जी पार्टनरशिप को सही दिशा देने का एक नैतिक दबाव भी पड़ेगा, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन एक नियम आधारित और बेहतर सार्थक लक्ष्यों वाला संगठन है। इंटरनेशनल सोलर अलायंस के बीजिंग स्थित ब्रिक्स के न्यू डेवलपमेंट बैंक के साथ ऊर्जा साझेदारियां होती रही हैं। ऐसे में ग्रीस भारत के वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा विजन में सहयोग दे सकेगा। भारत वैश्विक ऊर्जा ग्रिड की भी संकल्पना पेश कर चुका है। ग्रीस और उसके पड़ोस के राष्ट्रों में भारत की सोच को समर्थन, सम्मान मिले, इसके लिए विकसित हो रहे भारत ग्रीस संबंध काफी महत्वपूर्ण हैं।

छठा : भारत की विदेश नीति में एक नई धारणा पैराडिप्लोमेसी के विकास के संकेत मिलने शुरू हुए हैं। पिछले एक दशक से ऐसा दौर आ रहा है जिसमें शक्तियों के विभाजन की किसी कठोर व्यवस्था से ऊपर उठ कर शासन के अंगों द्वारा काम करना जरूरी हो गया । अब ऐसा नही है कि जो केंद्र कर सकता है वो राज्य सरकारें बिल्कुल नहीं कर सकती और और राज्य सरकारें यह नहीं कह सकतीं कि राज्य सूची का विषय है ये केंद्र की दखलंदाजी हमें स्वीकार नही है । इसी आलोक में भारत में प्रतिस्पर्धी संघवाद और पैराडिप्लोमैसी जैसे नए कॉन्सेप्ट्स की व्यवहार्यता तलाश की जानी शुरू हुई है। क्या एक मजबूत राज्य , कई मामलों में आत्मनिर्भर राज्य सुशासन का आधार बन सकता है , इसका विचार वर्तमान भारत सरकार द्वारा ही दिया गया और इसी के साथ पैराडिप्लोमैसी का कांसेप्ट भी सामने आया । यह धारणा राज्य सरकारों को भारतीय विदेश नीति में एक बड़ी भूमिका देने की बात करती है । क्या राज्य सरकारें सीधे तौर पर किसी अन्य देश से आर्थिक , राजनीतिक , सांस्कृतिक संबंध रख कर अपेक्षित परिणाम भारत को दे सकती हैं । आज इस पर बात हो रही है। क्या पंजाब डायरेक्ट माल्टा को दवाइयों की आपूर्ति का आर्डर दे सकता है। क्या पश्चिम बंगाल बांग्लादेश के साथ अच्छे संबंधों के लिए स्वयं फैसले ले सकता है। केरल संयुक्त अरब अमीरात से डायरेक्ट लिंक स्थापित कर सकता है ? क्या उत्तर पूर्वी राज्य इजरायल के साथ बेहतर संबंधों की दिशा में और दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों के साथ संबंधों में स्वतंत्र योगदान कर सकते हैं। इसी बात पर आधारित है यह कांसेप्ट।

लेकिन यह भी पूरी तरह सच है कि विदेश नीति में स्वतंत्र भूमिका के लिए राज्य सरकारों को एक विशेष परिपक्वता का परिचय देना पडेगा जो राष्ट्रीय हितों और भारत की संप्रभुता अखंडता के पक्ष में दिखाई दे क्योंकि आमतौर पर केंद्र सरकार को ही राष्ट्रीय हितों का प्रतिनिधि माना जाता रहा है और भारत की विविध केंद्र सरकारों ने ऐसा किया भी । वहीं राज्य सरकारों को आमतौर पर क्षेत्रीय राज्यीय हितों का पैरोकार माना जाता रहा है। राज्य सरकारें जब तक एक सुदृढ़ ग्लोबल विजन विकसित नहीं करतीं तब तक पैराडिप्लोमैसी के कांसेप्ट के समर्थन के बावजूद केंद्र सरकार की रेग्युलेटर और फेसिलिटेटर की भूमिका निर्विवाद रूप से बनी रहेगी । अब जबकि भारत पाकिस्तान के संबंध निलंबित स्थिति में हों तो कोई राज्य सरकार ( छत्तीसगढ़ ) राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में शामिल होने के लिए पाकिस्तान को निमंत्रण भेजे वो भी तब जब पाकिस्तान ने औपचारिक स्तर पर भारत के साथ उस निमंत्रण भेजने के समय आर्थिक राजनयिक संबंध खत्म कर रखा हो , तो ऐसी स्थिति में क्या पैराडिप्लोमैसी के कांसेप्ट के तहत राज्य सरकार द्वारा ऐसा करना कहीं से औचित्यपूर्ण है । पश्चिम बंगाल अगर रोहिंग्या या किसी समुदाय विशेष के सेटलमेंट या प्रत्यावर्तन के मुद्दे पर बांग्लादेश से कोई ऐसी बात कर बैठे जो राष्ट्रों हित के प्रतिकूल हो तो ये ठीक कहीं से नही होगा ।

सातवां , भारत की विदेश नीति में द्वीपीय कूटनीति यानि आइलैंड डिप्लोमेसी को अब विशेष महत्व मिलना शुरू हुआ है। हिंद महासागर के द्वीपीय देशों तक भारत की पहुंच के प्रयासों के पीछे कई सामरिक उद्देश्य काम कर रहे हैं। भारतीय विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की हालिया श्रीलंका व सेशेल्स की यात्र इसी सोच का एक हिस्सा रही है और इस रूप में द्वीपीय कूटनीति (आइलैंड डिप्लोमेसी) को भारतीय विदेश नीति के स्तंभ के रूप में विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। सेशेल्स के एजम्पसन द्वीप में भारत अपने सैन्य अड्डे की स्थापना के अवसर खोज रहा है। साथ ही अन्य द्वीपीय देशों में अपनी आर्थिक कूटनीतिक संलग्नता को भी बढ़ा रहा है। इसी क्रम में हाल ही में भारत के विदेश मंत्रलय द्वारा इंडो पैसिफिक डिवीजन के गठन के साथ ही द्वीपीय कूटनीति को औपचारिक रूप दे दिया गया है। पिछले वर्ष भी भारत सरकार ने एक नए इंडियन ओसियन रीजन डिवीजन के गठन के साथ ही आइलैंड डिप्लोमेसी की नींव रख दी थी जिसे इस वर्ष ठोस रूप देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा रही है। इसके अंतर्गत श्रीलंका, मालदीव, मॉरिशस और सेशेल्स को एक साथ शामिल किया गया था और वर्ष 2019 में इस डिवीजन में विस्तार कर मेडागास्कर, कोमोरोस और रीयूनियन द्वीप को भी शामिल कर लिया था। रियूनियन द्वीप पर फ्रांस का स्वामित्व है और हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात की अध्यक्षता में आयोजित इंडियन ओसियन रिम एसोसिएशन के काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स की वर्चुअल बैठक में भारत के समर्थन के साथ फ्रांस को इस एसोसिएशन का 23वां सदस्य बनाया गया है। यह भारत के द्वीपीय सुरक्षा और सागर विजन को मजबूती देने वाला कदम माना गया है।

इन सभी उपलब्धियों के साथ भारत के समक्ष नई चुनौतियां भी उभरी हैं । चीन और उसके प्रभाव में नेपाल के साथ सीमा विवाद ( गलवान , फिंगर क्षेत्र , पैंगोंग लेक क्षेत्र , कालापानी , लिपुलेख , लिम्पियाधुरा विवाद ) चीन और आसियान देशों के साथ भारत का लगातार बढ़ता व्यापारिक घाटा , चीन अमेरिका जैसे देशों पर दवाइयों के निर्माण के लिए कच्चे माल की आपूर्ति पर अति निर्भरता , दक्षिण चीन सागर में चीन की अवैध गतिविधियां , 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था के लक्ष्य के मार्ग में कोरोना महामारी का रोड़ा , विश्व के कई देशों के नए नेतृत्व से अर्थपूर्ण सामंजस्य बिठाना , पड़ोसी राष्ट्रों में चीन की बढ़ती विस्तारवादी नीति , खाड़ी देशों प्रवासी भारतीय श्रमिकों के हितों की सुरक्षा के प्रति सतर्कता आदि ऐसी कई चुनौतियों हैं जिनसे बेहतर रणनीति से निपटते हुए भारतीय विदेश नीति को आगे बढ़ना होगा।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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