ब्लॉग : शहतूत बांध के जरिए भारत का अफ़ग़ानिस्तान को जल उपहार by विवेक ओझा

भारत में एक लोकोक्ति हैं कि किसी प्यासे को पानी पिलाना बड़े पुण्य का काम होता है और जब बात दो मिलियन अफ़ग़ान नागरिकों को पेयजल और सिंचाई देने के लिए वहां बांध निर्माण की हो तो ये लोकोक्ति फिर से सामने आ जाती है। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ काबुल में पेय जल सुविधा उपलब्ध कराने के लिए शहतूत बांध के निर्माण के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। एक वर्चुअल समिट में भारत के विदेश मंत्री ने भारतीय प्रधानमंत्री और अफ़ग़ान राष्ट्रपति की उपस्थिति में इस बांध निर्माण के लिए मेमोरंडम ऑफ़ अंडरस्टैंडिंग पर हस्ताक्षर किया।

इसे काबुल रिवर बेसिन पर निर्मित किया जाना है । यह अफ़ग़ानिस्तान के पांच रिवर बेसिनों में से एक है। काबुल में लगभग दो मिलियन नागरिकों को इससे स्वच्छ पेय जल की प्राप्ति हो सकेगी और शहतूत बांध के जल का इस्तेमाल सिंचाई सुविधा के लिए किया जा सकेगा।

अफ़ग़ान राष्ट्रपति का इस अवसर पर कहना था कि भारत ने जल का उपहार ( गिफ्ट ऑफ़ वॉटर ) अफ़ग़ान नागरिकों को दिया है जो भारत के मानवीय , लोकतान्त्रिक मूल्य को दर्शाता है। जो दर्शाता है कि भारत पारस्परिक हित , पारस्परिक सम्मान , पारस्परिक विश्वास की भावना का सम्मान करता है। 286 यूएस मिलियन डॉलर की लागत से बन रहे शहतूत डैम को काबुल में बनाया जाएगा और इसके निर्माण का वित्त पोषण भारत करेगा। इसे लालंदर बांध के नाम से भी जाना जाता है। काबुल नदी बेसिन में एक सिंचाई नेटवर्क का विकास भी भारत द्वारा किया जाएगा ।

वर्चुअल समिट में भारतीय प्रधानमंत्री ने मौलाना जलालुद्दीन रूमी को उद्धृत करते हुए कहा कि रुमी ने नदियों के शक्तिशाली सभ्यतागत संबंध के बारे में कहा था कि, "जो नदी तुममें बहती है, वह मुझमें भी बहती है"। नदियाँ विश्व की महान सभ्यताओं की वाहक रही हैं। इसी भाव से जुड़कर भारत की मदद से 300 मिलियन डॉलर के खर्च पर सलमा बांध बनाया गया है , जो अफगानिस्तान को जल संकट से उबारने में मील का पत्थर साबित होगा। कुछ वर्ष पहले बने 'मैत्री बाँध' से हेरात में बिजली और सिंचाई की प्रणाली सुदृढ़ हुई है। इसे 1500 भारतीय और अफ़ग़ान इंजीनियरों ने मिलकर निर्मित किया था ।

क्यों जरूरी था यह जल उपहार :

संयुक्त राष्ट्र पहले ही कह चुका है कि अफ़ग़ानिस्तान में विस्थापन का कारण युद्ध से ज्यादा जल का अभाव रहा है। अफ़ग़ानिस्तान की तकरीबन 4 प्रतिशत आबादी (1.5 मिलियन ) को विस्थापन का शिकार होना पड़ा है जिसमें 4 लाख 48 हजार अकेले 2017 में इन आंकड़ों में शामिल हुए। इसी क्रम में अफगानिस्तान की जल अभाव की स्थिति को अमेरिका के जियोलॉजिकल सर्वे ने स्पष्ट करते हुए कहा था कि 2004 से 2012 के बीच ग्रांउडवॉटर स्तर औसतन 1.4 एमएम तक घट गया । रही सही कसर ला नीना जैसी मौसमी दशाओं ने पूरी कर दी जिससे अफ़ग़ानिस्तान को भीषण अकाल का सामना समय समय पर करना पड़ा । आज अफ़ग़ानिस्तान के 34 प्रांतों में से 22 प्रांत अकाल की स्थिति का सामना कर रहे हैं। यूएन मिशन इन अफ़ग़ानिस्तान का कहना है कि केवल 27 प्रतिशत अफ़ग़ान जनसंख्या की सुरक्षित पेय जल तक पहुंच है और केवल 37 प्रतिशत की स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच है। अफ़ग़ानिस्तान में पांच रिवर बेसिन हैं जिनमें शामिल हैं : अमु दर्या , हरिरुद मुरघब , हेलमंड , काबुल और नॉदर्न रिवर बेसिन । एकमात्र बेसिन जिसमें शत प्रतिशत जल का इस्तेमाल होता है वह है नॉदर्न रिवर बेसिन बाकी सभी उपलब्ध जल के 60 प्रतिशत से भी कम का उपयोग कर रही हैं । अफ़ग़ानिस्तान के वो शहर जो दुर्भिक्ष या अकाल से भीषण रूप से ग्रसित होने की नियति पा चुके हैं उनमें शामिल हैं : बामयान, डेकुंडी, घोर , हेलमंड , कंधार , निमरोज , नुरिस्तान , नंगंगरहर आदि।

अब इन परिस्थितियों के मद्देनजर यह परियोजना भारत और अफगानिस्तान के बीच नई विकास साझेदारी का एक हिस्सा बनी है । लालंदर ( शहतूत) बांध काबुल शहर की सुरक्षित पेयजल संबंधी जरूरतों को पूरा करेगा, आसपास के इलाकों को सिंचाई का पानी प्रदान करेगा, सिंचाई और जल निकासी के मौजूदा नेटवर्क को पुनर्जीवित करेगा, इस इलाके में बाढ़ सुरक्षा और प्रबंधन के प्रयासों में सहायता करेगा और इस क्षेत्र को बिजली भी प्रदान करेगा।

गौरतलब है कि भारत-अफगानिस्तान मैत्री बांध जिसे सलमा बांध बांध भी कहते हैं और जिसका उद्घाटन भारतीय प्रधानमंत्री और अफ़ग़ान राष्ट्रपति ने जून 2016 में किया था, के बाद यह भारत द्वारा अफगानिस्तान में बनाया जा रहा दूसरा बड़ा बांध है। लालंदर (शहतूत ) समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर, अफगानिस्तान के सामाजिक-आर्थिक विकास और दोनों देशों के बीच स्थायी साझेदारी के प्रति भारत की मजबूत और दीर्घकालिक प्रतिबद्धता का प्रतिबिंब है। अफगानिस्तान के साथ भारत के विकास से जुड़े सहयोग के एक हिस्से के तौर पर, भारत ने अफगानिस्तान के सभी 34 प्रांतों को कवर करते हुए 400 से अधिक परियोजनाओं को पूरा किया है।

अफ़ग़ानिस्तान में भारत की विकास साझेदारी :

भारत ने अफगानिस्तान में विकासात्मक परियोजनाएं चला के उसका डेवलपमेंट पार्टनर बनना ज्यादा श्रेयस्कर समझा । आतंकवाद के भुक्तभोगी भारत के इस पक्ष को ग़लत नहीं ठहराया जा सकता । भारत ने अफगानिस्तान में 4 बिलियन डॉलर से अधिक का विकास निवेश किया है । अफगान संसद का पुनर्निर्माण, सलमा बाध का निर्माण , जरंज डेलारम सड़क निर्माण , गारलैंड राजमार्ग के निर्माण में सहयोग, बामियान से बंदर ए अब्बास तक सड़क निर्माण , काबुल क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण, चार मिग 25 अटैक हेलीकॉप्टर दिए हैं । अफगान प्रतिरक्षा बलों को भारत सुरक्षा मामलों में प्रशिक्षण भी दे रहा है । चबाहार और तापी जैसी परियोजनाओं से दोनों जुड़े हुए हैं । भारत ने अफगानिस्तान में सैन्य अभियानों में किसी तरह की संलग्नता ना रखने की नीति बनाई ताकि वह हक्कानी नेटवर्क , आइसिस खोरासान , तहरीक ए तालिबान जैसे संगठनों का प्रत्यक्ष रूप से निशाना ना बन जाए जैसा कि आज अमेरिका और नाटो के साथ है। ऐसे में यह सवाल पूछना बड़ा आसान है कि आखिर भारत ने किया ही क्या है अफगानिस्तान के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत बनाने के लिए । यहां यह भी सच है कि भारत अफगानिस्तान में प्रतिरक्षा के मामलों में अपनी और प्रोएक्टिव भूमिका निभा सकता था और निभा सकता है । वह आधुनिक प्रतिरक्षा उपकरणों हथियारों को देकर अफगान सुरक्षा बलों को और मजबूती दे सकता है और इस कार्य में लगा भी है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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