यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (विषय: किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन (Amendment in Juvenile Justice Act, 2015)

यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स ब्रेन बूस्टर (Current Affairs Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


विषय (Topic): किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन (Amendment in Juvenile Justice Act, 2015)

किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में संशोधन (Amendment in Juvenile Justice Act, 2015)

चर्चा का कारण

  • हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी है।

प्रस्तावित संशोधन

  • इस संशोधन के माध्यम से बच्चों के संरक्षण के ढांचे को जिलावार एवं प्रदेशवार मजबूत बनाने के उपाए किये गए हैं। इस संशोधन के माध्यम से अब जिला मजिस्ट्रेट (DM) और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (ADM) हर जिले में किशोर न्याय (JJ) अधिनियम को लागू करने वाली एजेंसियों के कार्यों की निगरानी करेंगे ताकि ऐसे मामलों का तेजी से निपटाया जा सके और जवाबदेही तय की जा सके।
  • इसमें बाल कल्याण समितियाँ, किशोर न्याय बोर्ड, जिला बाल संरक्षण इकाइयाँ और विशेष किशोर सुरक्षा इकाइयाँ शामिल हैं।
  • संशोधन के तहत, किशोर न्याय अधिनियम (Juvenile Justice Act) के दायरे का विस्तार किया गया है। तस्करी और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के शिकार या अभिभावकों द्वारा छोड़े गए बच्चों को "देखभाल की जरूरत वाले बच्चे" और "सुरक्षा" की परिभाषा में शामिल किया जाएगा।
  • अब तक बाल कल्याण समितियों (Child Welfare Committees-CWC) के सदस्य बनने वाले लोगों की पृष्ठभूमि की जांच करने के लिए कोई विशेष नियम नहीं थे, लेकिन अब इन संशोधनों के अनुसार, CWC का सदस्य बनने से पहले, पृष्ठभूमि और शैक्षिक योग्यता की जांच की जाएगी।
  • जो भी संस्था चाइल्ड केयर इंस्टीटड्ढूट चलाना चाहती है, उसे अपना मकसद राज्य सरकार को बताना होगा। प्रस्तावित संशोधनों में, CCI के रजिस्ट्रेशन से पहले, डीएम एक बाल देखभाल संस्थान (Child Care Institute) की क्षमता और पृष्ठभूमि की जांच करेंगे और फिर राज्य सरकार को सिफारिशें पेश करेंगे।

किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015

  • किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 ने भारतीय किशोर अपराध कानून-किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 की जगह ली है।
  • विशेष रूप से यह अधिनियम अनाथ, छोड़ दिए गए और सरेंडर किए गए बच्चों (माता-पिता ने जिनसे अपना कानूनी अधिकार छोड़ दिया है) के घरेलू और इंटर कंट्री एडॉप्शन की व्यापक प्रक्रिया का प्रावधान करता है।
  • एडॉप्शन एक कानूनी प्रक्रिया है जिसमें कोई बच्चा अपने दत्तक (एडॉप्टिव) माता-पिता का कानूनी बच्चा बन जाता है और इस प्रकार अपने बायोलॉजिकल माता-पिता से स्थायी रूप से अलग हो जाता है।
  • 6 अगस्त, 2018 को किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) संशोधन बिल, 2018 लोकसभा में पेश किया गया था। यह बिल एडॉप्शन की कार्यवाही में तेजी लाने के लिए डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को एडॉप्शन के आदेश देने की शक्ति प्रदान करता है।
  • एक्ट के अंतर्गत भारत या विदेश में रहने वाले भावी दत्तक (एडॉप्टिव) माता-पिता एक बार बच्चे को स्वीकार कर लेते हैं तो एडॉप्शन एजेंसी सिविल अदालत में एडॉप्शन के आदेश हासिल करने के लिए आवेदन देती है। अदालत अपने आदेश में कहती है कि बच्चा एडॉप्टिव माता-पिता का है।
  • अगर विदेश में रहने वाले किसी व्यत्तिफ़ को अपने किसी संबंधी के बच्चे को गोद लेना है, तो उसे अदालत से आदेश हासिल करना होता है और सेंट्रल एडॉप्शन रेगुलेशन अथॉरिटी (कारा) में नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट के लिए आवेदन करना होता है।
  • यह अधिनियम 16-18 वर्ष की आयु के बीच के ऐसे किशोरों के संबंध में, जो जघन्य अपराधों में शामिल हैं, यह अनुमति देता है कि उन किशोरों को वयस्कों के तौर पर आजमाया जा सकता है।
  • यह अधिनियम, अभिभावक और वार्ड अधिनियम (1890) (मुसलमानों पर लागू) और हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम (1956), जो हिंदुओं, जैन, बौद्ध और सिख लोगों के लिए लागू है) को हटाकर, भारत के लिए एक सार्वभौमिक तौर पर सुलभ दत्तक कानून बनाने का भी प्रयास करता है। हालांकि यह उन्हें प्रतिस्थापित नहीं करता है।

एडॉप्शन की शक्ति

  • उल्लेखनीय है कि जब से किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) एक्ट, 2000 लागू हुआ है, तब से एडॉप्शन के आदेश देने की शक्ति अदालत में निहित है। इसी प्रकार युनाइटेड किंगडम, जर्मनी, फ्रांस और युनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के कई स्टेट्स में अदालतें ही एडॉप्शन के आदेश देती हैं।