यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (विषय: संविधान की सातवीं अनुसूची पर पुनर्विचार की आवश्यकता (Need to Reconsider the Seventh Schedule of the Constitution)

यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए करेंट अफेयर्स ब्रेन बूस्टर (Current Affairs Brain Booster for UPSC & State PCS Examination)


विषय (Topic): संविधान की सातवीं अनुसूची पर पुनर्विचार की आवश्यकता (Need to Reconsider the Seventh Schedule of the Constitution)

संविधान की सातवीं अनुसूची पर पुनर्विचार की आवश्यकता (Need to Reconsider the Seventh Schedule of the Constitution)

चर्चा का कारण

  • वर्तमान में 15वें वित्त आयोग द्वारा कई दूरदर्शी सिफारिशें की गई हैं, लेकिन राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और प्रौद्योगिकी में आते बदलाव को देखते हुये 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एन के सिंह का मानना है कि संविधान की सातवीं अनुसूची पर फिर से विचार किये जाने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि सातवीं अनुसूची केन्द्र और राज्यों के बीच अधिकारों का आवंटन करती है।

प्रमुख बिन्दु

  • वित्त आयोग ने केंद्र के टैक्स में राज्यों के हिस्से को 2015-20 की अवधि के मुकाबले 2020-21 में कम करने का सुझाव दिया है। पहले यह हिस्सा 42% था और अब 41% है। नव निर्मित केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख को केंद्र सरकार द्वारा धनराशि देने के लिए 1% की गिरावट की गई है।
  • विदित हो कि 10वें वित्त आयोग ने सुझाव दिया था कि सभी केंद्रीय करों को राज्यों के साथ साझा किया जाए। इसके बाद 14वें वित्त आयोग ने केंद्रीय कर राजस्व की शुद्ध आय में राज्यों की हिस्सेदारी को 32% से 42% तक बढ़ाने का सुझाव दिया था।

सातवीं अनुसूची क्या है?

  • सातवीं अनुसूची संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत संघ और राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन से संबंधित है। इसमें तीन सूचियाँ सम्मिलित हैं- संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची।
  • संघीय सूची के तहत शामिल विषयों पर केन्द्र सरकार को कानून बनाने का अधिकार है तथा राज्य सरकारों को राज्य सूची में शामिल विषयों पर कानून बनाने के अधिकार दिये गये हैं।
  • समवर्ती सूची के तहत शामिल विषयों पर केन्द्र और राज्य दोनों को कानून बनाने के अधिकार दिये गये हैं, लेकिन किसी विवाद की स्थिति में केन्द्र के कानून ही मान्य होंगे।

आवश्यकता क्यों?

  • बदलती हुई राजकोषीय प्राथमिकताओं के साथ तालमेल रखने के लिए सातवीं अनुसूची का पूरी तरह से विधायी मूल्यांकन करना आवश्यक है।
  • संघीयता की भावना को अक्षुण्ण रखते हुए इसे लोकतांत्रिक और परामर्शात्मक रूप से प्रबंधित किया जाना चाहिए।
  • केन्द्र प्रायोजित योजनाओं (center sponsored scheme) को इतना लचीला होना चाहिये कि राज्य इन्हें अपना सकें और इनमें नवप्रवर्तन कर सकें।
  • केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के लिये कुल सार्वजनिक व्यय 6 से 7 लाख करोड़ रुपये सालाना है। इसमें केन्द्र सरकार अकेले 3.5 लाख करोड़ रुपये खर्च करती है जो कि जीडीपी का 1.2 प्रतिशत है। केन्द्र और
    राज्यों के राजकाषीय सुदृढीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिये और अधिक मेलजोल और सहयोग की आवश्यकता है।
  • बदलते वक्त के साथ संघ या केंद्र ने विभिन्न कारणों से राज्यों को सौंपे गए विषयों में हस्तक्षेप किया है। उदाहरण के लिए, रोजगार और शिक्षा जैसे विषय राज्य सूची के विषय हैं फिर भी, भारत में रोजगार (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) और शिक्षा (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) पर केंद्र द्वारा कानून बनाया गया।
  • केन्द्र प्रायोजित योजनाओं के आगमन ने कृषि जैसे राज्य सूची के विषय में भी बहस को तेज कर दिया है।
  • समवर्ती सूची की प्रविष्टि -33, जहां एक ओर कृषि विषयों पर राज्यों की शक्ति को सीमित करती है वहीं दूसरी ओर केंद्र को यह अधिकार देते हुए ताकतवर बनाती है कि वह कृषि उत्पादन,कृषि-व्यापार, खाद्यान वितरण और कच्चे कृषि उत्पाद संबंधी मामलों पर कानून बनाए।

राज्यों की घटती निर्णय शक्ति

  • संविधान के भाग 11 के अनुच्छेद 248 के अनुसार केंद्र के पास किसी भी उस विषय पर, जिसका जिक्र सातवीं सूची में नहीं है, निर्णय लेने की शक्तियाँ हैं। अनुच्छेद 249 के अंतर्गत संसद के पास किसी भी
    विषय पर कानून बनाने का हक है, यहाँ तक कि अगर संसद को जरूरी लगे कि अमुक विषय राष्ट्रीय हित में जरूरी है तो वह राज्य सूची के विषयों पर भी यही करने का अधिकार रखती है।