‘भारत में 400 मिलियन से अधिक लोग गरीबी से बाहर’ - समसामयिकी लेख

   

कीवर्ड : आर्थिक सर्वेक्षण, एसडीजी, गरीबी, प्रगतिशील, असमानताएं, बहुआयामी गरीबी, आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय, सामाजिक सुरक्षा।

संदर्भ :

  • संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, 2005-06 से 2019-2021 के बीच 400 मिलियन से अधिक भारतीय, गरीबी से बाहर निकले हैं।
  • आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि सामाजिक कल्याण पर ध्यान केन्द्रित करना समकालीन परिदृश्य में अधिक प्रासंगिक हो गया है क्योंकि भारत ने संयुक्त राष्ट्र एसडीजी 2030 को अपनाया है, जो व्यापक, दूरगामी, जन-केंद्रित, सार्वभौमिक और परिवर्तनकारी लक्ष्यों का एक सम्मुचय (सेट) है।

मुख्य विचार:

  • सर्वेक्षण में अक्टूबर 2022 में जारी संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) 2022 रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों पर प्रकाश डाला गया, जिसमें 111 विकासशील देशों को शामिल किया गया है ।
  • सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2005-06 से 2019-2021 तक 41 करोड़ (410 मिलियन) से अधिक लोग गरीबी से बाहर निकले हैं, 2030 तक गरीबी को आधा करने के सतत विकास लक्ष्य की दिशा में प्रगति का प्रदर्शन किया, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र बहुआयामी गरीबी सूचकांक द्वारा मापा गया है।

गरीबी :

  • गरीबी को मुख्य रूप से एक सभ्य जीवन के लिए मौद्रिक साधनों की कमी के रूप में मापा जाता है, उदाहरण के लिए स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छ पेयजल और शिक्षा की गुणवत्ता तक पहुंच में कमी।
  • हालाँकि, परिभाषा के अनुसार 'गरीबी' के व्यापक निहितार्थ हैं जो एक ही समय में कई स्तर पर प्रकट होते हैं जैसे खराब स्वास्थ्य या कुपोषण, स्वच्छता की कमी, स्वच्छ पेयजल या बिजली, शिक्षा की खराब गुणवत्ता आदि।
  • इसलिए गरीबी की वास्तविक और व्यापक तस्वीर बनाने के लिए बहुआयामी गरीबी की अवधारणा का उपयोग किया जाता है।
  • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की 16.4 % आबादी (2020 में 228.9 मिलियन) बहुआयामी रूप से गरीब थी और अन्य 18.7% (2020 में 260.9 मिलियन) इसकी चपेट में थी।
  • सर्वेक्षण ने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के निष्कर्षों की व्याख्या करते हुए कहा है कि भारत में 2005-06 से 2019-21 तक 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आये हैं, यह दर्शाता है कि 2030 तक गरीबी को कम से कम आधा करने का एसडीजी लक्ष्य प्राप्त करने योग्य है ।

बहु-आयामी गरीबी सूचकांक (एमडीपीआई) क्या है?

परिभाषा और प्रासंगिकता :

  • बहुआयामी गरीबी आकलन का उद्देश्य-,गरीबी और अभाव की सीमा का अधिक व्यापक मूल्यांकन प्रदान करने के लिए गरीबी के गैर-आय आधारित आयामों को मापना है।
  • कई अंतरराष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी उपकरण मौजूद हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं:
  • ईयू- 2020 आधिकारिक गरीबी उपाय ।
  • यूएनडीपी का एमपीआई (गरीबी में लोगों के अनुपात और उनकी गरीबी की तीव्रता को रेखांकित करने वाला एक शीर्षक सूचकांक ) ।
  • बच्चों की बहुआयामी गरीबी को मापने के लिए "ब्रिस्टल" पद्धति ।
  • यूनिसेफ का एमओडीए(बच्चों की बहुआयामी गरीबी)।
  • आईएफएडी का एमपीएटी (10 अलग संकेतक)।
  • बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई ) यूएनडीपी कार्यालय द्वारा मानव विकास रिपोर्ट को प्रकाशित किया जाता है जो तीन आयामों -स्वास्थ्य (बाल मृत्यु दर, पोषण), शिक्षा (स्कूली शिक्षा, नामांकन के वर्ष), और जीवन स्तर (जल, स्वच्छता , बिजली, खाना पकाने का ईंधन, फर्श, संपत्ति) को 10 संकेतकों के माध्यम से ट्रैक करता है।
  • यह पहले पहचान करता है कि इन 10 में से प्रत्येक परिवार किस अभाव का अनुभव करता है, यदि वे भारित संकेतकों के एक-तिहाई या अधिक में अभावों का सामना करते हैं, तो उन परिवारों की पहचान गरीब के रूप में की जाती है।

सरकार का उद्देश्य और पहल:

  • सर्वेक्षण में, भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सुधार एवं वर्तमान और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के सरकार के उद्देश्य का उल्लेख किया गया है।
  • सर्वेक्षण में कहा गया है कि सरकार प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल खर्च बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जो कि वित्त वर्ष 14 में 51.1% से बढ़कर वित्त वर्ष 19 में 55.2% हो गया है, ताकि बुनियादी स्तर पर सुलभ स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा सकें।
  • आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना की प्रशंसा की गई है , जो 26,055 से अधिक अस्पतालों में लगभग 200 मिलियन लोगों को मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करती है।
  • यह नोट किया गया है कि आयुष्मान भारत के तहत देश भर में 154,000 स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र स्थापित किए गए हैं ।
  • सर्वेक्षण में कहा गया है कि कुल स्वास्थ्य व्यय में सरकारी स्वास्थ्य व्यय का हिस्सा वित्त वर्ष 14 में 28.6% से बढ़कर वित्त वर्ष 19 में 40.6% हो गया है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि स्वास्थ्य के लिए सामाजिक सुरक्षा पर खर्च वित्त वर्ष 14 में 6% से बढ़कर वित्त वर्ष 19 में 9.6% हो गया है, जिसमें सामाजिक स्वास्थ्य बीमा, सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा और सरकारी कर्मचारियों के लिए चिकित्सा प्रतिपूर्ति शामिल है।

निष्कर्ष:

  • सरकारी स्वास्थ्य व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि का प्रभाव आउट -ऑफ-पॉकेट व्यय (ओओपीई) को कम करने पर पड़ता है।
  • स्वास्थ्य सेवा पर सरकारी खर्च में वृद्धि के साथ, नागरिक अब बेहतर रूप से सुसज्जित हैं और स्वास्थ्य सेवा तक उनकी बेहतर पहुंच है, जिससे कुल स्वास्थ्य व्यय के प्रतिशत के रूप में ओओपीई में गिरावट आई है।
  • आर्थिक सर्वेक्षण में "अमृत काल" का युग बनाने की भारत की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला गया है , जहां आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण दोनों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • देश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रगति का लाभ उसकी विविध आबादी के प्रत्येक सदस्य तक पहुंचे, चाहे वह किसी भी संस्कृति, भाषा या स्थान का हो, उन्हें राष्ट्र की सच्ची संपत्ति के रूप में मान्यता मिल सके।
  • इसका प्रमुख लक्ष्य ‘किसी को पीछे नहीं छोड़ना है’ क्योंकि दुनिया लगातार महामारी और चल रहे संघर्षों से उबर रही है।

स्रोत: मिंट

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3:
  • भारतीय अर्थव्यवस्था और संसाधनों की योजना, गतिशीलता, विकास, विकास और रोजगार से संबंधित मुद्दे।

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  • भारत, 400 मिलियन से अधिक लोगों को गरीबी से बाहर निकाल कर, एसडीजी लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में अग्रसर है। चर्चा कीजिये I (150 शब्द)