बैंकों के एनपीए प्रबंधन को समग्र बनाने की आवश्यकता - समसामयिकी लेख

   

कीवर्ड : गैर-निष्पादित ऋण, ऋण राइट-ऑफ, भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी ), संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियां I

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में, वित्त मंत्री ने संसद को बताया कि भारतीय बैंकों ने वित्त वर्ष 2018 से वित्त वर्ष 2022 तक पांच वर्षों में बट्टे खाते में डाले गए 10.09 लाख करोड़ रुपये के गैर-निष्पादित ऋणों में से 13 प्रतिशत या 1.32 लाख करोड़ रुपये की वसूली करने में सफ़लता हासिल की है।
  • इसमें ऋण वसूली न्यायाधिकरणों सहित सभी उपलब्ध तंत्रों से वसूली, दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी ) के तहत सुलझाए गए मामले, सरफेसी अधिनियम के तहत की गई कार्रवाई, परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों को गैर-निष्पादित ऋणों की बिक्री, और इसी तरह की अन्य तंत्र भी शामिल हैं।

राइट-ऑफ ऋण क्या है?

  • एक ऋण को राइट ऑफ करने से तात्पर्य है कि इसे अब संपत्ति के रूप में नहीं गिना जाएगा। ऋणों को बट्टे खाते में डालकर बैंक अपने खातों में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के स्तर को कम कर सकता है। इसका एक लाभ यह भी है कि इस प्रकार बट्टे खाते में डाली गई राशि बैंक की कर देयता को कम कर देती है।
  • आमतौर पर, बैंकों को शुरू में गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) के रूप में वर्गीकृत करने के बाद ऋण को पूरी तरह से राईट ऑफ़ करने में चार से पांच साल लगते हैं।

वसूली अनुपात:

  • वैश्विक आंकड़ों को बेंचमार्क मानने पर, भारत का वसूली अनुपात इतना खराब नहीं लग सकता है, जहां खराब ऋणों से औसत वसूली 7 से 12 प्रतिशत होने का अनुमान है।
  • भारत में बट्टे खाते में डाले गए ऋणों की वसूली भी 7 प्रतिशत के स्तर से सुधरी हुई प्रतीत होती है, जिस पर वे कई वर्षों से अटके हुए थे।
  • लेकिन हाल के वर्षों में बकाएदारों को सजा दिलाने के लिए भारतीय बैंकों को सौंपे गए मजबूत तंत्र के संदर्भ में, यह आंकड़ा मामूली प्रतीत होता है।

बैंक राइट-ऑफ का सहारा क्यों लेते हैं?

  • ऋण लेने वाले द्वारा, ऋण चुकौती में चूक करने के बाद बैंक ऋण को बट्टे खाते में डाल देता है जिसकी वसूली की बहुत कम संभावना होती है।
  • ऋणदाता तब डिफ़ॉल्ट ऋण, या एनपीए के रूप में उस संपत्ति को बाहर कर देता है और राशि को नुकसान के रूप में रिपोर्ट करता है।
  • राइट-ऑफ़ के बाद, बैंकों से अपेक्षा की जाती है कि वे विभिन्न विकल्पों का उपयोग करके ऋण की वसूली के अपने प्रयासों को जारी रखें। जिसके लिए उन्हें प्रावधान भी करना होगा।
  • लाभ से बट्टे खाते में डाली गई राशि कम होने से कर देनदारी भी कम होगी।

एनपीए क्या है?

  • बैंक द्वारा प्रदान किया गया कोई भी ऋण एनपीए में बदल सकता है यदि मूलधन या ब्याज का भुगतान 3 महीने (90 दिनों) से अधिक समय तक नहीं किया गया हो।

पुनर्प्राप्ति के उपकरण:

  • ऋण वसूली न्यायाधिकरण :
  • वे ग्राहकों के साथ बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को शामिल कर ऋण वसूली की सुविधा के लिए कार्य करते हैं।
  • सरफेसी अधिनियम, 2002:
  • यह बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को ऋण की वसूली के लिए आवासीय या वाणिज्यिक संपत्तियों (डिफ़ॉल्ट रूप से) की नीलामी करने की अनुमति देता है।
  • अधिनियम गैर-निष्पादित संपत्तियों की वसूली के लिए तीन वैकल्पिक तरीके प्रदान करता है-
  1. प्रतिभूतिकरण,
  2. संपत्ति पुनर्निर्माण और
  3. न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना सुरक्षा का प्रवर्तन।
  • दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) :
  • आईबीसी का उद्देश्य समयबद्ध तरीके से निगमों, व्यक्तियों और साझेदारियों के दिवालियापन को पुनर्गठित कर उनको हल करना है।
  • भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम:
  • यह बैंकों को टुकड़ों में संपत्तियों को जब्त करने का अधिकार देता है, भारत ने खराब ऋण वसूली के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
  • यह उन आर्थिक अपराधियों की संपत्तियों को जब्त करने या उन संपत्तियों को जब्त करने का प्रयास करता है जो भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहकर अभियोजन पक्ष से बचते हैं।
  • नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (बैड बैंक):
  • एनएआरसीएल को कंपनी अधिनियम के तहत शामिल किया गया है और उसने परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (एआरसी) के रूप में लाइसेंस के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को आवेदन किया है।
  • यह योजना ₹500 करोड़ और उससे अधिक के खराब ऋणों के लिए एक बैड बैंक बनाने की है, जिसमें एक संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी (एआरसी) और एक संपत्ति प्रबंधन कंपनी (एएमसी) शामिल होगी, जो ख़राब संपत्ति का प्रबंधन और वसूली करेगी।

एनपीए कम करने के कारण:

  • यदि गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के पिछले कुछ दशकों के सबसे निचले स्तर पर अर्थात वित्त वर्ष 2024 में 4% ( क्रिसिल के अनुसार) तक गिरने की उम्मीद है , तो इसका मुख्य कारण है
  • निजी कैपेक्स में मंदी,
  • बैंक परियोजना ऋण देने से पीछे हट रहे हैं, और
  • इंडिया इंक द्वारा डिलीवरेजिंग

सुधार के मौके :

  • उधार देने और अंडर राइटिंग प्रैक्टिस ( ऋण देने में पारदर्शिता ) में अभी भी सुधार की पर्याप्त संभावना है ।
  • उदाहरण के लिए, कुछ बैंक अपनी सहायक कंपनियों द्वारा प्रदान की गई 'ऑपरेटिंग कम्फर्ट' के आधार पर होल्डिंग कंपनियों के लिए अपना एक्सपोजर बढ़ा रहे हैं, जो पहले से ही काफी हद तक लीवरेज्ड हैं।
  • यह प्रथा पिछले चक्र में समूह-स्तरीय ऋण जोखिम को खराब परिसंपत्तियों में परिवर्तित करने वाले प्रमुख कारणों में से एक थी।

प्री अटेम्प्टिव कार्रवाई की आवश्यकता:

  • नकदी प्रवाह आधारित वित्तपोषण ( एक ऐसा मॉडल जहां जोखिम को समय पर निपटाना मुश्किल होता है) तीव्र गति से बढ़ रहा है।
  • इन्फ्रा-बूम दिनों की तुलना में इस तरह की प्रथाएं आज कम प्रचलित हैं।
  • लेकिन जैसा कि वे अगले कैपेक्स चक्र को बैंकरोलिंग करना शुरू करते हैं, बैंकों के लिए राइट-ऑफ की आवश्यकता को कम करने का सबसे अच्छा तरीका एनपीए अभिवृद्धि को शुरुवाती चरण में रोकना है ।
  • जब ऋण एनपीए में बदलने की प्रतीक्षा करने के बजाय एसएमए (विशेष उल्लेखित खाता) स्थिति में चले जाते हैं, तो इसके लिए अधिक प्री अटेम्प्टिव कार्रवाई की आवश्यकता हो सकती है।

आगे की राह:

  • आरबीआई को अपनी ओर से बैंकों को व्यवस्थित आधार पर अपने ऋण राइट-ऑफ और वसूली पर अधिक पारदर्शिता प्रदर्शित करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  • एनपीए, बट्टे खाते में डालने और वसूलियों का सही से समय-वार विश्लेषण करना आवश्यक है, ताकि जानबूझ कर चूक करने वालों और आर्थिक चक्रों या व्यावसायिक अनिवार्यताओं के विपरीत प्रवर्तकों द्वारा धन की हेराफेरी के परिणामस्वरूप खराब ऋणों के अनुपात को समझा जा सके।
  • जहां इरादतन चूक ( विलफुल डिफाल्टर ) के स्पष्ट प्रमाण हैं, वहां नेम और शेम रीजाइम गलत करने वालों के लिए एक रक्षा उपकरण के रूप में कार्य कर सकता है, और हितधारकों को सतर्क भी कर सकता है।

स्रोत: द हिंदू बीएल

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3:
  • भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना से संबंधित मुद्दे, संसाधन जुटाना, विकास, विकास और रोजगार।

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  • एनपीए संचय को रोकने के लिए एनपीए प्रबंधन को अधिक व्यापक होना चाहिए। चर्चा कीजिये।