ग्रहीय दबाव समायोजित मानव विकास सूचकांक - समसामयिकी लेख

प्रासंगिकता/ पाठ्यक्रम से सम्बद्धता की वर्ड :- मानव विकास रिपोर्ट, ग्रह दबाव-समायोजित मानव विकास सूचकांक, प्रति व्यक्ति मटेरियल फुटप्रिंट, ग्रहीय क्षमता, जीवन-सहायक प्रणाली, बहुआयामी गरीबी सूचकांक

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा जारी मानव विकास रिपोर्ट (वर्ष- 2020, शीर्षक :- "द नेक्स्ट फ्रंटियर- ह्यूमन डेवलपमेंट एंड द एंथ्रोपोसीन") में एक प्लेनेटरी प्रेशर (ग्रहीय दबाव)- समायोजित मानव विकास सूचकांक नामक रिपोर्ट निकालने का प्रस्ताव रखा गया है।

पृष्ठभूमि :-

  • 1990 में महबूब-उल-हक़ तथा अमर्त्य सेन द्वारा दिए गए सिद्धांतो के उपरान्त यूएनडीपी द्वारा मानव विकास सूचकांक की गणना में असमानता का समायोजन किया गया। तब से असमानता- समायोजित मानव विकास सूचकांक के निष्कर्ष आने आरम्भ हुए।
  • इसके अतिरिक्त, कई अन्य सूचकांकों जैसे कि लिंग विकास सूचकांक, लिंग असमानता सूचकांक और बहुआयामी गरीबी सूचकांक की गणना की गई जो नीति निर्माताओं के ध्यान को आकर्षित करती हैं। ये सूचकांक विभिन्न मुद्दों के सन्दर्भ में नीतिनिर्माण में सहायक होते हैं।

ग्रहीय दाब- समायोजित मानव विकास सूचकांक (पीएचडीआई) :-

  • पीएचडीआई की गणना में मानवीय विकास के लिए मनुष्य द्वारा ग्रह पर डाले गए अत्याधिक दबाव का आंकलन किया जाता है। जिसमें प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (उत्पादन-आधारित) और प्रति व्यक्ति मटेरियल फुटप्रिंट को समायोजित किया गया है।
  • इस परिवर्तन को प्रोत्साहन के दृष्टिकोण के रूप में देखा जाना चाहिए। एक आदर्श स्थिति में (जहां ग्रह पर कोई दबाव नहीं है), वहां पीएचडीआई तथा एचडीआई समान होंगे।
  • ग्रहीय दबाव बढ़ने के साथ ही साथ पीएचडीआई, एचडीआई से कम होता चला जाता है। इस प्रकार पीएचडीआई मानव विकास में ग्रह (पृथ्वी) पर पड़ने वाले मानवीय दबाव को आकलित करता है।

ग्रहीय दबाव-समायोजित मानव विकास सूचकांक की आवश्यकता:-

  • अभिजीत बनर्जी के अनुसार मानवीय विकास के मापन में पर्यावरण एक आवश्यक घटक बन चुका है।
  • ग्रहीय सीमा की अवधारणा 2009 में स्टॉकहोम रेजिलिएंस सेंटर के जे. रॉकस्ट्रॉम के नेतृत्व में वैज्ञानिको के एक समूह द्वारा प्रस्तुत की गई थी।
  • मानव-प्रेरित पर्यावरणीय परिवर्तन पृथ्वी के दीर्घकालिक आयामों को अस्थिर कर सकता है। जो ग्रह की जीवन-सहायक प्रणाली को बाधित करेगा।
  • वैश्विक तथा स्थानीय स्तर पर निम्नलिखित स्थितियों के साक्ष्य उपस्थित हैं-
  • जैव विविधता हानि
  • जलवायु परिवर्तन
  • भूमि प्रणाली/ भूमि-उपयोग परिवर्तन
  • जैव-भू-रासायनिक चक्रों का विघटन
  • ताजे जल (पीने योग्य जल) की उपलब्धता की कमी
  • ग्रहीय दबाव समायोजित एचडीआई, या पीएचडीआई का उद्देश्य समाज को वर्तमान संसाधन प्रबंधन तथा पर्यावरणीय प्रथाओं के जोखिमों से अवगत करना है।

देशो की रैंकिंग पर प्रभाव

  • 2019 में वैश्विक मानव विकास सूचकांक 0.737 था जो ग्रहीय दबाव से समायोजित होने के उपरान्त 0.683 हो गया।
  • उच्च मानव विकास वाले देशों के समूह में स्विटजरलैंड एकमात्र ऐसा देश है, जिसकी रैंक ग्रहीय दबाव के समायोजन के बाद परिवर्तित नहीं हुई। हालांकि आवश्यक समायोजन के बाद स्विट्ज़रलैंड का का एचडीआई मूल्य 0.955 से घटकर 0.825 हो गया।
  • ग्रहीय दबाव से समायोजन के बाद उच्च मानव विकास वाले 66 देशों में से 30 देशों की रैंकिंग में गिरावट हुई। जहां जर्मनी तथा मोंटेनेग्रो के रैंक में 1 स्थानों के गिरावट हुई वहीं लक्जमबर्ग के रैंक में 131 स्थानों की गिरावट हुई।
  • यह स्थिति विकसित देशो द्वारा ग्रह (पृथ्वी) पर उत्पादन दबाव को प्रत्यक्ष रूप से सामने लाता है तथा परोक्ष रूप से इस स्थिति का सामना करने में विकसित देशो के उत्तरदायित्व को इंगित करता है।
  • भारत में औसत प्रति व्यक्ति CO2 उत्सर्जन (उत्पादन) तथा प्रतिव्यक्ति मटेरियल फुटप्रिंट क्रमशः 2.0 टन और 4.6 टन है। भारत का मानव विकास में स्कोर 0.645 जबकि ग्रहीय समायोजन के साथ पीएचडीआई स्कोर 0.626 है। समायोजन के बाद भारत ने वैश्विक रैंकिंग में आठ अंकों (एचडीआई के तहत 131वीं रैंक और पीएचडीआई के तहत 123वीं रैंक) का सुधार प्राप्त होगा।

ग्रहीय दबाव-समायोजित मानव विकास की दिशा में भारत की प्रगति

प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन

भारत में प्राकृतिक संसाधनों का कुशलतम उपयोग ना होकर व्यापक दोहन हो रहा है। विभिन्न पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ रही हैं। कई परियोजनाओं में प्राकृतिक दोहन के मामले सामने आते हैं जो चिंताजनक है।

गरीबी बनाम पर्यावरण संरक्षण सुविधा

  • भारत में 27.9% लोग बहुआयामी गरीबी सूचकांक के मानक के नीचे जीवन यापन करते हैं। इनमें केरल के 1.10% से लेकर बिहार में 52.50% लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं जो एक व्यापक असमानता भी प्रदर्शित करती है। बहु आयामी गरीबी सूचकांक के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की एक बड़ी जनसंख्या प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है।
  • इस प्रकार भारत में गरीबी उन्मूलन तथा पर्यावरण संरक्षण एक दोहरी चुनौती के रूप में है। जिसका उल्लेख सर्वप्रथम पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा 1972 के मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन के दौरान किया गया था, परंतु तब से इस पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गई।

सतत विकास लक्ष्यों को पाने में निम्न प्रदर्शन

  • नीति आयोग 2020-21 के अनुसार सतत विकास लक्ष्यों में भारत ने गरीबी शून्यता की श्रेणी में 60 अंक (परफॉर्मर श्रेणी) तथा शून्य भुखमरी में 47 अंक (आकांक्षी श्रेणी) प्राप्त किया है। ध्यातव्य हो कि सतत विकास लक्ष्यों के लिए अधिकतम 100 अंक (अचीवर श्रेणी) निर्धारित है।
  • सतत विकास लक्ष्य 8, 9 तथा 12 (क्रमशः डीसेंट वर्क एंड इकोनामिक ग्रोथ, उद्योग नवाचार तथा बुनियादी ढांचा, तथा उत्तरदाई उपभोग तथा उत्पादन) में भारत की सफलता ग्रहीय दबाव को कम करने में सहायक हुई है। इन तीनों लक्ष्यों में भारत को क्रमशः 61अंक (परफॉर्मर श्रेणी), 55 अंक (परफॉर्मर श्रेणी) तथा 74 (फ्रंट रनर श्रेणी) प्राप्त हुई है।

जन जागरूकता

  • उत्तराखंड में चिपको आंदोलन (1973) तथा केरल में साइलेंट वैली आंदोलन (1970 के दशक के अंत में) दो बड़े आधुनिक जन आंदोलन है। इन जन आंदोलनों के उपरांत सरकार तथा समुदाय के स्तर पर पर्यावरणीय पहलो में वृद्धि हुई है।
  • सामाजिक तथा पर्यावरणीय समस्याओं को अलग-अलग करके हल नहीं किया जा सकता बल्कि उनके लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसका समाधान स्थानीय स्तर पर किया जा सकता है जिसकी कल्पना भारत के 73वें तथा 74वें संविधान संशोधन के द्वारा की गई है।

निष्कर्ष

सामाजिक प्रक्रियाओं तथा पृथ्वी प्रणाली प्रक्रिया के परस्पर अन्योन्याश्रित होने का सिद्धांत व्यापक रूप से स्थापित हो चुका है। यह भी स्पष्ट है कि उनके मध्य संबंध अरेखीय तथा द्वंदात्मक है। इसीलिए सामाजिक तथा आर्थिक प्रणालियों के साथ मानवीय विकास में पर्यावरणीय तत्वों को सम्मिलित कर, प्रकृति आधारित समाधानों पर व्यवस्था का निर्माण करना एक बड़ी तथा आवश्यक चुनौती है। परंतु प्रकृति आधारित दृष्टिकोण जीवन को बेहतर बनाने के संदर्भ में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। अतः वर्तमान सामाजिक, आर्थिक प्रणाली में पर्यावरणीय तत्वों का समावेश करने के लिए नियोजन प्रक्रिया का पुनर्विन्यास, विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण, उचित संस्थागत व्यवस्था तथा राजनैतिक निर्णयों की आवश्यकता है।

स्रोत- द हिंदू न्यूजपेपर

सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3
  • संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  • ग्रहीय दबाव-समायोजित मानव विकास सूचकांक (पीएचडीआई) से आप क्या समझते हैं? एसडीजी की पूर्ति और पर्यावरण केंद्रित मानव विकास में इसके महत्व के बावजूद, कई पूंजीवादी देशों द्वारा इसे स्वीकारने की दिशा में की गई प्रगति सराहनीय नहीं है। चर्चा करें।