विदेशी पोर्टफोलियो निवेश और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Portfolio Investment and Foreign Direct Investment) : डेली करेंट अफेयर्स

वैश्वीकरण के दौर ने विदेशी निवशकों को दूसरे देशों में निवेश करने की छूट दी। इसके बाद से विदेशी निवेशक दूसरे देशों में डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तरीके से निवेश करते रहते हैं। इसलिए आये दिन विदेशी निवेश चर्चा में रहता है। अभी हाल ही के डिपॉजिटरी के आंकड़ों के मुताबिक 1 से 16 दिसंबर के बीच विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारतीय इक्विटी बाजार में 10,555 करोड़ रुपये का निवेश किया है।

दरअसल जब किसी देश में उस देश से बाहर के निवासी या बाहर की कम्पनी या विदेशी संस्थाएं निवेश करती हैं तो उसे विदेशी निवेश कहा जाता है। आम तौर पर ये निवेश दो तरह से किये जाते हैं - प्रत्यक्ष यानी डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट और अप्रत्यक्ष यानी इनडायरेक्ट इन्वेस्टमेंट। भारत में प्रत्यक्ष निवेश को FDI यानी फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट कहा जाता है जबकि अप्रत्यक्ष निवेश के कई तरीके हैं। इसमें FPI यानी फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट और FII यानी फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टमेंट्स प्रमुख हैं।

FDI में कोई विदेशी व्यक्ति या कम्पनी भारत के व्यापार में या कारपोरेशन में सीधे निवेश करती है और उसी व्यापार या कंपनी के संपत्ति, शेयर या डिबेंचर खरीद कर सीधे भागीदारी करती है। इस तरह के निवेश का सीधा उद्देश्य उस व्यापार या कम्पनी में लम्बे समय तक के लिए भागीदारी करना होता है। इसलिए इसमें निवेश की हिस्सेदारी 10% से ज्यादा होती है और इसमें इन्वेस्टर मैनेजमेंट में सक्रिय भागीदार की भूमिका में होता है।

FPI में विदेशी व्यक्ति या कम्पनी स्टॉक मार्केट के माध्यम से प्रतिभूतियां और वित्तीय संपत्ति खरीदता है और जैसे ही उन शेयर की कीमत बढ़ती है उन शेयर को बेच देता है। इसमें कोई पैसा सीधे कंपनी को नहीं मिलता है और यह छोटे टाइम के लिए किया जाने वाला निवेश है। इसमें निवेशक किसी भी तरह की भागीदारी नहीं करता है। इसमें निवेशक की हिस्सेदारी उस कम्पनी में 10% से कम होती है। इसमें निवेशक बस आर्थिक लाभ पर फोकस रहता है बजाय कम्पनी में शेयर होल्डर बनने के। इसलिए इसमें इन्वेस्टर्स किसी भी तरह से कम्पनी के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।

FII की बात करें तो यह FPI से सम्बंधित होता है। इसमें ऐसी विदेशी संस्थाएं, निवेशक समूह या फण्ड बॉडी शामिल होती हैं जो दूसरे देश से FPI लेकर आती हैं। दरअसल जब कोई सिंगल कंपनी स्टॉक मार्किट के माध्यम से निवेश करती है तो इसे FPI कहते हैं, लेकिन जब यही FPI ग्रुप ऑफ़ इन्वेस्टर्स करते हैं तो इसे FII यानी फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टमेंट कहा जाता है। इन इन्वेस्टर्स ग्रुप में बीमा कम्पनीज, म्यूच्यूअल फण्ड की कम्पनीज और पेंशन फंड जैसे ग्रुप शामिल होते हैं। इस तरह के निवेश के लिए ये संस्थाएं सेबी में पंजीकरण कराती हैं। ये निवेश प्रतिभूतियों में, वास्तविक सम्पतियों में या अन्य किसी भी तरह की सम्पतियों में किया जा सकता है। चूँकि इसमें ग्रुप ऑफ़ इन्वेस्टर्स इन्वेस्टमेंट करता है, इसलिए इसमें FPI की तुलना में अधिक राशि निवेश की जाती है।

ग़ौरतलब है कि FPI और FII दोनों स्टॉक मार्किट के द्वारा होता है, इसलिए इसमें स्वतः निगरानी बनी रहती है लेकिन जब कोई विदेशी निवेश डायरेक्ट होता है तो उसके लिए अलग से निगरानी की जरुरत होती है। अब देखना ये है कि इस तरह के निवेश पर गवर्नमेंट की कितनी निगरानी है। दरअसल भारत में दो तरह से डायरेक्ट विदेशी निवेश हो सकते हैं। एक ऑटोमैटिक रुट से और दूसरा अप्रूवल रुट या गवर्नमेंट रुट से। इसमें ऑटोमैटिक रुट का मतलब होता है कि इस रुट से निवेश करने के लिए विदेशी निवेशक को सरकार या किसी सरकारी एजेंसी की अनुमति लेने की जरुरत नहीं है, लेकिन अप्रूवल रुट या गवर्नमेंट रुट से भारत में निवेश करने के लिए विदेशी निवेशक को आरबीआई या उन सरकारी एजेंसी से अनुमति लेनी पड़ती है जिनसे अनुमति लेने के लिए विदेशी निवेश नीति में प्रावधान किया गया है। ऐसी अनुमति इसलिए आवश्यक की गयी जिससे भारत में हो रहे निवेश पर निगरानी रखी जा सके।

इसके अलावा भारत में कुछ ऐसे भी सेक्टर हैं जहां विदेशी निवेश नहीं किया जा सकता है जैसे कि लॉटरी बिजनेस, चिट फंड बिजनेस, निधि कंपनी में, सिगार, चुरुट, सिगारिलो, सिगरेट, तंबाकू या तंबाकू के विकल्प के मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस में और कैसीनो, जुआ और सट्टेबाजी के बिजनेस में।