Year Ender 2022 Series : अर्थव्यवस्था वार्षिकी 2022

1. भारत विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था

COVID-19 के बाद वर्ष 2022 भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर वर्ष रहा है। इस वर्ष दुनिया के सबसे विकसित देशों की तुलना में भारत की विकास दर स्थिर रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के सितम्बर के आंकड़ों के मुताबिक एक दशक पूर्व जहां भारत की जीडीपी विश्व में 11वें स्थान पर थी वंही इस वर्ष भारत विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। आईएमएफ ने वर्ष 2027 तक भारत के चौथी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान भी लगाया है। दुनिया के जीडीपी में भारत का योगदान 3.5% है। वर्ष 2022 में भारत की नॉमिनल जीडीपी 3.8 ट्रिलियन डॉलर रही है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी NSO के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 में अप्रैल से जून के दौरान, भारत का ग्राॅस वैल्यू ऐडेड यानी GVA 12.7 प्रतिशत बढ़ा है। लंदन के कंसल्टेंसी सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च ने वर्ष 2037 तक भारत के तीसरी आर्थिक महाशक्ति और 2035 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान लगाया है। इस उपलब्धि के पीछे जिन प्रमुख योजनाओं को विशेषज्ञ आधार बता रहें हैं उनमें आत्मनिर्भर भारत, डिजिटलीकरण, प्रत्यक्ष लाभार्थी हस्तांतरण योजना, जीएसटी, दिवालियापन अधिनियम आदि प्रमुख हैं।

Core Sectors of the Indian Economy : Daily Current Affairs ...

2. महंगाई

वर्ष 2022 में भारत की अर्थव्यवस्था में सबसे चर्चित मुद्दा महंगाई का था। यह साल शुरू होने पर ही खुदरा मुद्रास्फीति 6% से ऊपर थी। इसके बाद रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ। जिसके बाद कच्चे तेलों के दाम में बढ़ोत्तरी के साथ महंगाई अपने चरम पर पहुँच गयी। अप्रैल में, खुदरा मुद्रास्फीति 7.9 % की दर के साथ आठ साल के सबसे ऊँचे स्तर पर पहुंच गई। मई तक आरबीआई इस दर को नियंत्रित करने में असफल रही है। कच्चे तेलों के दाम में बढ़ोत्तरी के कारण भारत का विदेशी मुद्रा कोष भी खाली होता रहा। इसके बाद रूपये की गिरती वैल्यू ने महंगाई को और ज्यादा बढ़ाने का काम किया। जहां साल के शुरुआत में डॉलर 75 रूपये के आस-पास था वहीं अब यह 82 रूपये तक पहुंच गया है। अक्टूबर के आंकड़ों के अनुसार महंगाई लगातार नौ महीने 6% की दर से ऊपर रही। नवंबर महीने में रिटेल महंगाई 6% से नीचे आकर 5.8% फीसदी पर रुकी है। हालांकि महंगाई के मामले में भारत की स्थिति अन्य देशों से बेहतर है और यह राहत की बात है, क्योंकि कई देशों में महंगाई दर 40 साल के सबसे ऊँचें स्तर पर पहुंच चुकी है।

3. रेपो रेट

आरबीआई ने काफी लम्बे समय बाद, इस साल रेपो रेट में कई बार बढ़ोतरी की। रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर आरबीआई बैंकों को अल्पकालिक धन उधार देता है। जब आरबीआई रेपो रेट बढ़ाता है तो मार्केट में लिक्विडिटी कम हो जाती है, जिसके चलते महंगाई में कमी होती है। साल में पहली बार मई में रेपो रेट में 0.40% की बढ़ोतरी की गई। जिसके बाद लगातार तीन बार रेपो रेट में 0.50-0.50 प्रतिशत की और दिसंबर में 0.35 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई। इन बढ़ी दर के साथ रेपो रेट 6.25 प्रतिशत पर पहुंच गया है। रेपो रेट और महंगाई में सीधा संबध होता है। इसको इस तरह से समझिये कि जब बैंक कम ब्याज दर पर लोन देती है तो लोग ज्यादा पैसा उधार लेते हैं, बाजार में नकदी बढ़ती है जिसके चलते लोगों की खरीदने की क्षमता बढ़ जाती है। इस वजह से रेपो रेट बढ़ाया जाता है जिसके चलते बैंक के लोन पर ब्याज बढ़ जाता है और लोगों की खरीदने की क्षमता कम होती है और इससे महंगाई भी कम होती है।

4. डॉलर बनाम रुपया

महंगाई के साथ रुपये का लगातार कमजोर होना भी भारत के लिए इस वर्ष की बड़ी समस्या रही। चूँकि भारत निर्यात से ज्यादा आयात करता है इसलिए, विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, तेजी से घट रहा है। हालाँकि निर्यात के लिए रुपया का कमजोर होना अच्छा है। दरअसल डॉलर मजबूत होने के पीछे का प्रमुख कारण ये है कि अमेरिका का फेडरल बैंक Covid-19 के दौरान बढ़ी हुई लिक्विडिटी को कम कर रहा है, जिसके चलते निवेश की ब्याज दर बढ़ाई जा रही है। इसलिए उच्च ब्याज दर के कारण दुनिया भर से डॉलर अमेरिका में निवेश किये जा रहे हैं और वैश्विक बाजार से डॉलर कम हो रहें हैं। इस कारण डॉलर के मुकाबले दुनिया की तमाम देशों की करेंसी कमजोर हुई है। जहां साल की शुरुआत में डॉलर की वैल्यू 75 रूपये के पास थी, वहीं अब यह साल के अंत तक 82 रूपये पर पहुंच गयी है।

5. भारतीय फॉरेक्स रिजर्व

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। वर्ष 2022 की शुरुआत में, कुल विदेशी मुद्रा भंडार 633.61 बिलियन अमरीकी डॉलर था। दिसंबर 2022 में विदेशी मुद्रा भंडार में 57.1 करोड़ डॉलर घटकर 563.5 अरब डॉलर पर आ गया है। यह भण्डार दिसम्बर के पहले सप्ताह में 564.1 अरब डॉलर था। स्वर्ण भंडार 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 40.579 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया। विदेशी मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्राओं के अलावा बांड, स्वर्ण भंडार, ट्रेजरी बिल और अन्य सरकारी प्रतिभूतियां शामिल होती हैं। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा विदेशी करेंसी का होता है। फरवरी के अंत में रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी से गिरावट आई थी। ये गिरावट वैश्विक आयात महंगा होने का कारण दर्ज की गई है। इसके साथ ही रूपये की तरलता को संतुलित रखने के लिए डॉलर बेंचा भी गया है। जिसके चलते भी डॉलर में कमी आयी है।

6. जीडीपी की वृद्धि दर

हाल ही में विश्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की वृद्धि दर के अनुमान को 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया है। इससे पहले सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से जीडीपी के आंकड़े जारी किये गए थे। जिसके मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही यानी जुलाई से सितंबर के बीच देश की अर्थव्यवस्था ने 6.3 फीसदी के दर से विकास किया है। पिछले वित्त वर्ष यानी वर्ष 2021-2022 की जीडीपी वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत रही है। अगर विश्व बैंक का यह अनुमान सही साबित हुआ तो जीडीपी वृद्धि दर वित्त वर्ष 2021-2022 के मुकाबले घट जायेगा।

बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए सभी देश के केंद्रीय बैंक अपनी ब्याज दर बढ़ा रहें हैं। इसके चलते विश्व के लगभग सारे देशों की जीडीपी पर प्रभाव दिखायी दे रहा है। साथ ही चीन का लॉकडाउन विश्व के सप्लाई चेन को प्रभावित कर रहा है। इस कारण भी दुनिया में मंदी की दर में भी बढ़ोत्तरी हुई है। सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी किसी दिए गए वर्ष में देश में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य है। इसे आसान भाषा में देश की मार्कशीट कहा जा सकता है जो देश की आर्थिक गतिविधियों के स्टेटस को दिखाता है।

7. डिजिटल रुपया

रिज़र्व बैंक ने 1 दिसम्बर को डिजिटल रूपये का पायलट प्रोजेक्ट लांच किया। जिसके तहत डिजिटल रुपया आम जनता के लिए मार्केट में लाया गया। यह पायलट प्रोजेक्ट दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और भुनेश्वर में लांच किया गया। इसका थोक इस्तेमाल परीक्षण 1 नवंबर को किया गया था। डिजिटल रुपया एक टोकन होता है। ये मार्केट में चल रहे सिक्कों और नोटों के जैसा ही होता है। यह नार्मल नोटों या सिक्कों के साइज में ही होता है लेकिन इसे आप पर्स में नहीं रख सकते हैं। इसे आप मोबाईल वैलेट में सॉफ्ट कॉपी में रख सकते हैं और ये मोबाईल के माध्यम से ही खर्च किया जाता है। यह आम जनता के पास बैंको के माध्यम से आएगा और इसे बैंको के पास जमा भी किया जा सकेगा पर इस पैसे पर कोई ब्याज नहीं मिलेगा। इसका बड़ा फायदा यह है कि इसे डिजिटल से कैश में भी बदला जा सकेगा।

8. स्टार्टअप्स और यूनिकॉर्न्स का उदय

कोरोना लहर, मंदी के डर और तमाम चुनौतियों को पीछे छोड़ते हुए भारत वर्ष 2022 के जनवरी से जुलाई के बीच के समय में, स्टार्टअप यूनिकॉर्न के मामले में चीन से आगे निकल गया है। जनवरी से जुलाई के बीच भारत में 14 स्टार्टअप यूनिकॉर्न बने, जबकि चीन के सिर्फ 11 स्टार्टअप यूनिकॉर्न बने हैं। स्टार्टअप नई आईडिया वाली एक ऐसी कंपनी होती है जिसने हाल ही में अपना कामकाज शुरू किया हो। स्टार्टअप सफल होने के बाद ये एक बड़ी कंपनी के तौर पर अपनी पहचान बना लेते हैं। नए उद्यम या नए व्यवसाय को स्टार्टअप कहते हैं। यही स्टार्टअप आगे चलकर यूनिकॉर्न बन जाते हैं। स्टार्टअप यूनिकॉर्न एक अरब डॉलर से ज्यादा वैल्यूएशन वाला स्टार्टअप होता है। भारत में स्टार्टअप से यूनिकॉर्न बनने के लिए मिनिमम समय 6 महीने और मैक्सिमम समय 26 वर्ष है। स्टार्टअप इंडिया अभियान 16 जनवरी 2016 को शुरू हुआ था, जिसके बाद देश में मान्यता प्राप्त स्टार्ट अप की संख्या 75 हजार से अधिक हो गयी है। वर्तमान में भारत विश्व में स्टार्टअप के मामले में तीसरे स्थान पर है। यहां 108 यूनिकॉर्न हैं, जबकि पहले स्थान पर अमेरिका और दूसरे स्थान पर चीन है। स्टार्टअप के प्रमुख क्षेत्रों में आईटी सर्विस सेक्टर का 13 प्रतिशत, हेल्थ और बायोलॉजी सेक्टर का 9 प्रतिशत, शिक्षा का 7 प्रतिशत, पेशेवर और व्यावसायिक सेवाओं का 5 प्रतिशत, कृषि का 5 प्रतिशत और खाद्य और पेय पदार्थों का 5 प्रतिशत योगदान है।

9. क्रिप्टो क्रैश

जहां वर्ष 2021 क्रिप्टो और एनएफटी यानी कि Non-Fungible Token के लिए स्वर्णयुग था तो वहीँ साल 2022 इनके लिए पतन का साल रहा। इस वर्ष अधिकांश क्रिप्टोकरेंसी की कीमतों में भारी गिरावट हुई है। टेरा-लूना के पतन के साथ बाजार अस्थिर हो गया और इसके बाद स्थिति तब और बिगड़ गई जब FTX यानी फ्यूचर एक्सचेंज प्लेटफॉर्म दिवालिया हो गया। जिसके चलते निवेशकों का बहुत नुकसान हुआ है। बिटकॉइन की बढ़ती ब्याज दरें और इसकी कीमत का लगातार गिरना भी क्रिप्टो करेंसी में मोहभंग का एक बड़ा कारण है।

10. मंदी के चलते नौकरी खोने का भय

भारत और विश्व के कई अध्ययन यह दिखाते हैं कि बढ़ती ब्याज दरों के खतरे, मुद्रास्फीति और मंदी के अनुमान सहित कई ऐसे आर्थिक कारक हैं जो नौकरीपेशा लोगों की नौकरी के लिए खतरा बन सकता है। इनमे मंदी सबसे बड़ा कारण हैं। दरअसल बढ़ती महंगाई के चलते मार्किट में डिमांड और सप्लाई की चेन बाधित हो रही है जिसके चलते उद्योग अतिरिक्त खर्च के बोझ को कम करने के प्रयास में लगे हैं और अधिक लोगों की नियुक्ति इनके सबसे बड़े अतिरिक्त खर्च के रूप में दर्ज हैं। सोशल मीडिया पोर्टल ट्विटर ने अपने 90 फीसदी कर्मचारियों को भारत से निकाल दिया और वैश्विक कर्मचारियों की संख्या आधी कर दी। अमेरिका के सबसे बड़े ऑनलाइन पेमेंट स्टार्ट-अप स्ट्राइप ने अपने 14 प्रतिशत कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। दुनिया के सबसे बड़े ई-कॉमर्स बिजनेस अमेजन ने भी 10 हजार लोगों को नौकरी से निकाला। फेसबुक-मेटा ने अपने 13 प्रतिशत लोगों को निकाल दिया और चाइम ने अपने 12 प्रतिशत कर्मचारियों को निकाल दिया। इन सारी घटनाओं के चलते भारत में नौकरी गवाने का खौफ लगातार बना है।