ग्लोबल साउथ (Global South) : डेली करेंट अफेयर्स

अगर आप मोटे तौर पर देखेंगे तो पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित ज्यादातर देश विकसित हैं और संपन्न है, जबकि पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित ज्यादातर देश अविकसित अथवा विकासशील हैं और गरीबी से जूझ रहे हैं। यानी एक तरह का एक छिपा हुआ डिवाइड है जो विकसित और अविकसित देशों के बीच लाइन खींचता है। इसकी कोई तय परिभाषा नहीं है लेकिन उत्तरी गोलार्ध में विकसित देशों के समूह के लिए ग्लोबल नॉर्थ, जबकि दक्षिणी गोलार्ध में स्थित विकासशील या विकसित देशों के लिए ग्लोबल साउथ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।

1960 के दशक में पनपा 'ग्लोबल साउथ' शब्द आम तौर पर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। खासकर इसका मतलब, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बाहर, दक्षिणी गोलार्द्ध और भूमध्यरेखीय क्षेत्र में स्थित ऐसे देशों से है जो ज्यादातर कम आय वाले हैं और राजनीतिक तौर पर भी पिछड़े हैं। ज्यादातर 'ग्लोबल साउथ' देश औद्योगीकरण वाले विकास की दौड़ में पीछे रह रह गए। इनका उपनिवेश वाले देश के पूंजीवादी और साम्यवादी सिद्धांतों के साथ विचारधारा का भी टकराव रहा है।

ये ग्लोबल साउथ अविकसित क्यों है?

दरअसल वैश्विक एजेंडे में आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े देशों की आवाज हर बार अनकही और अनसुनी रह जा रही है और ये देश लगातार पिछड़ते जा रहे हैं। अगर हाल ही की विकासात्मक बाधा को देखें तो हम पाएंगे कि कोविड महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन मुख्य भूमिका में हैं। वैश्विक संसाधनों तक अपर्याप्त पहुंच और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर अमेरिका का हावी होना और चीन की कर्ज-जाल वाली नीतियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।

ग्लोबल साउथ और जियो-पॉलिटिक्स की बात करें तो दुनिया की एक बड़ी आबादी दक्षिणी विश्व में रहती है और इन देशों में प्राकृतिक संसाधन भी अधिक हैं, लेकिन फिर भी वैश्विक नीतियां और योजनाएं बहुत हद तक ग्लोबल नॉर्थ द्वारा ही निर्धारित की जाती हैं। अगर जी20 को देखा जाये तो इसमें 'ग्लोबल नॉर्थ' और 'ग्लोबल साउथ' दोनों समूहों के देश शामिल हैं, लेकिन ग्लोबल नॉर्थ के देशों की संख्या ज्यादा होने के नाते ग्लोबल साउथ की समस्याएं इस मंच पर भी अब तक अनसुनी रह गयी हैं।

ऐसे में जब भारत जी-20 का अध्यक्ष बना है तो यह G20 की अध्यक्षता को न केवल देश बल्कि विश्व हित में भुनाना चाहता है। इसी सपने को साकार करने के लिए भारत ने ग्लोबल साउथ की आवाज बनने का जिम्मा लिया है। अभी हाल ही में बीते 12 जनवरी को भारत की अगुवाई में हुआ ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन” इसका बड़ा उदाहरण है। इस ग्लोबल साउथ समिट के दौरान उन तमाम मुद्दों पर चर्चा हुई जो इसके विकास के लिए अहम हैं। इस दो दिवसीय वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट में 120 से अधिक विकासशील देशों की भागीदारी देखी गई। जिसके चलते इसे दक्षिणी विश्व का सबसे बड़ा ऐतिहासिक सम्मलेन कहा जा रहा है। वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट को विकासशील देशों के लिए चिंताओं, दृष्टिकोणों और प्राथमिकताओं को साझा करने का एक मंच कह सकते हैं।

कैसे और क्यों भारत ग्लोबल साउथ की आवाज बन सकता है?

समकालीन वैश्विक राजनीति में भारत सक्रिय भूमिका में हैं। इसके उदाहरण के तौर पर मोटा अनाज वर्ष और योग दिवस के साथ-साथ सौर ऊर्जा और अन्य जलवायु परिवर्तन से संबंधित योजनाओं की लोकप्रियता को देख जा सकता है। इस अवसर का प्रयोग दुनियादारी के हित में किया जाना जरुरी है।

दरअसल ग्लोबल साउथ भारत की वर्तमान G20 अध्यक्षता का एक महत्वपूर्ण फोकस है। जिसके तहत भारत लगातार ग्लोबल साउथ के मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने का प्रयास कर रहा है। भारत अपनी मौजूदा जी20 अध्यक्षता के साथ ग्लोबल साउथ के विकास की पृष्ठभूमि भी तैयार कर रहा है, जो आने वाले समय में ग्लोबल साउथ के विजन को और मजबूत करेगा क्योंकि भारत के बाद, G20 की अध्यक्षता मैक्सिको और फिर दक्षिण अफ्रीका करेगा और ये दोनों देश ग्लोबल साउथ का हिस्सा हैं।

भारत ने इससे पहले भी इस तरह के सहयोग की कई पहलें की है …. जैसे वैक्सीन के लिए पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देना, बौद्धिक अधिकारों वाले व्यापार में छूट देकर कोविड के उपचार तक पहुंच सुनिश्चित करना, BRICS को विकास केंद्रित बनाना इसके प्रमुख उदाहरण हैं।