धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 (Prevention of Money Laundering Act 2002) : डेली करेंट अफेयर्स

धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 (Prevention of Money Laundering Act 2002)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पश्चिम बंगाल के तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी कोयला चोरी के मामले में बयान दर्ज कराने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समक्ष प्रस्तुत हुए |

धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money ...

मनी लॉन्ड्रिंग क्या होती है?

मनी लॉन्ड्रिंग से तात्पर्य अवैध तरीके से कमाए गए काले धन को वैध तरीके से सफेद धन में परिवर्तित करना है। मनी लॉन्ड्रिंग अवैध रूप से प्राप्त धनराशि को छुपाने का एक तरीका होता है। मनी लॉन्ड्रिंग के माध्यम से धन ऐसे कामों या निवेश में लगाया जाता है कि जाँच करने वाली एजेंसियों को भी धन के मुख्य स्रोत का पता लगाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है। जो व्यक्ति इस प्रकार के धन की हेरा-फेरी करता है, उसे लांडरर (The Launderer) कहा जाता हैं विदित हो कि पैसे की लॉन्डरिंग प्रक्रिया में तीन चरण शामिल होते हैं-

  1. प्लेसमेंट (Placement)
  2. लेयरिंग (Layering)
  3. एकीकरण (Integration)

पहले चरण का संबंध नगदी के बाजार में आने से होता है। इसमें लांडरर (The launderer) अवैध तरीके से कमाए गए धन को वित्तीय संस्थानों जैसे बैंकों या अन्य प्रकार के औपचारिक या अनौपचारिक वित्तीय संस्थानों में नगद रूप से जमा करता है।

"मनी लॉन्ड्रिग" में दूसरा चरण 'लेयरिंग' अर्थात् धन छुपाने से सम्बन्धित होता है। इसमें लांडरर लेखा किताब (Book of accounting) में गड़बड़ी करके और अन्य संदिग्ध लेन-देन करके अपनी असली आय को छुपा लेता है। लांडरर धनराशि को निवेश के साधनों जैसे कि बांड, स्टॉक, और ट्रैवेलर्स चेक या विदेशों में अपने बैंक खातों में जमा करा देता है। यह खाता अक्सर ऐसे देशों की बैंकों में खोला जाता है जो कि मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी अभियानों में सहयोग नहीं करते हैं।

एकीकरण मनी लॉन्ड्रिंग प्रक्रिया का अंतिम चरण होता है। जिसके माध्यम से बाहर भेजा गया पैसा या देश में खपाया गया पैसा वापस लांडरर के पास वैध धन के रूप में आ जाता है। ऐसा धन अक्सर किसी कंपनी में निवेश, अचल संपत्ति खरीदने, लक्जरी सामान खरीदने आदि के माध्यम से वापस आता है।

धन शोधन निवारण अधिनियम 2002

धन शोधन निवारण अधिनियम को 2002 में अधिनियमित किया गया था और इसे 2005 में लागू किया गया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य काले धन को सफेद में बदलने की प्रक्रिया (मनी लॉन्ड्रिंग) से लड़ना है।

धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है-

  1. मनी लॉन्ड्रिंग को रोकना।
  2. अवैध गतिविधियों और आर्थिक अपराधों में काले धन के उपयोग को रोकना।
  3. मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल या उससे प्राप्त संपत्ति को जब्त करना।
  4. मनी लॉन्ड्रिंग के जुड़े अन्य प्रकार के संबंधित अपराधों को रोकने का प्रयास करना।
  5. धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 के अंतर्गत अपराधों की जांच के लिए जिम्मेदार प्राधिकरण प्रवर्तन निदेशालय है।

धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 के तहत दंड का प्रावधान

मनी लॉन्ड्रिंग के दोषी पाए जाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ विभिन्न कार्रवाइयाँ शुरू की जा सकती है, जैसे; अपराध के माध्यम से अर्जित की गई संपत्ति और रिकॉर्ड आदि को जब्त करना।

धन शोधन के अपराध के लिए कम से कम 3 वर्ष का कठोर कारावास, जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है,साथ में जुर्माना भी यदि धन शोधन के अपराध के साथ-साथ नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 से जुड़े अपराध भी शामिल हैं तो जुर्माने के साथ 10 साल तक की सजा हो सकती है।

प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate)

प्रवर्तन निदेशालय , भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन एक विशेष वित्तीय जाँच एजेंसी है।

इस निदेशालय की उत्पत्ति 1 मई, 1956 को हुई, जब विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1947 के तहत विनिमय नियंत्रण कानून के उल्लंघन से निपटने के लिये आर्थिक मामलों के विभाग में एक 'प्रवर्तन इकाई' का गठन किया गया। वर्ष 1957 में इस इकाई का नाम बदलकर 'प्रवर्तन निदेशालय' कर दिया गया ।

प्रवर्तन निदेशालय निम्नलिखित कानूनों को लागू करता है:

  • विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999
  • धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002