सम्मेद शिखर (Sammed Shikhar) : डेली करेंट अफेयर्स

धर्म क्या है? धर्म की विशद व्याख्या होती रही है और आगे भी होती रहेगी। हालाँकि अभी तक जितनी भी व्याख्याएं हुईं हैं उनमें एक बिंदु कॉमन है और वो ये कि यह सीधे-सीधे आस्था से जुड़ा है। अपनी आस्था को व्यक्त करने के लिए इंसान या कोई समुदाय तमाम तरह के कर्मकांड या फिर आस्था के केंद्रों को विकसित करता है। यह केंद्र मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या तमाम अन्य स्थलों के रूप में हो सकते हैं। आस्था का एक ऐसा ही केंद्र है श्री सम्मेद शिखरजी।

सम्मेद शिखर समस्त जैन जगत के लिए पूजनीय हैं क्योंकि 24 जैन तीर्थंकरों में से 20 जैन तीर्थंकरों को यहीं पर मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। जैन समुदाय के लोग इस स्थान को तीर्थों का राजा या तीर्थराज कहते हैं। यह पवित्र स्थान झारखंड राज्य के गिरिडीह जिले के मधुबन क्षेत्र में स्थित है। लगभग 1350 मीटर ऊंची पारसनाथ की पहाड़ियां झारखण्ड की सबसे ऊंची पहाड़ी है। जैन ग्रंथों के अनुसार सम्मेद शिखर और अयोध्या, इन दोनों का अस्तित्व सृष्टि के समानांतर है। इसलिए इनको 'शाश्वत' माना जाता है। यही कारण है कि जब सम्मेद शिखर तीर्थयात्रा शुरू होती है तो तीर्थयात्रियों का मन तीर्थंकरों का स्मरण कर अपार श्रद्धा, आस्था, उत्साह और खुशी से भर उठता है।

साल 2019 में सम्मेद शिखर जी क्षेत्र को लेकर एक गजट नोटिफिकेशन निकाला गया, जिसके आधार पर इसे इको टूरिज्म क्षेत्र घोषित करने की बात कही गई। सरकार के इस निर्णय का जैन समाज ने मुखर विरोध करने लगा। दरअसल जैन धर्म के लोग घोर अहिंसावादी होते हैं और खान-पान में बहुत सावधानी बरतते हैं। ऐसे में जैन समुदाय के लोगों का कहना है कि सम्मेद शिखर जी क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने से यहाँ काफी संख्या में पर्यटक आएंगे। यह पर्यटक यहां आकर मांस-मदिरा आदि यानी जो उनके धर्म में निषिद्ध भोज्य-पदार्थ हैं उनका सेवन कर सकते हैं। इससे जैनों का यह पवित्र तीर्थस्थल क्षेत्र दूषित हो जायेगा। इसी कारण सारे देश में जैन धर्म के लोग सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं।

अभी हाल ही में इस निर्णय के विरोध में अनशन कर रहे जैन मुनि सुज्ञेय सागर ने अपने प्राण त्याग दिए, जिसके बाद केंद्र सरकार ने तत्काल प्रभाव से तीन साल पहले जारी अपने विवादित आदेश को वापस ले लिया है और इस क्षेत्र में पर्यटन और इको टूरिज़्म एक्टिविटीज़ पर रोक लगाने का निर्देश दे दिया। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए, इको-सेंसिटिव जोन अधिसूचना के क्लॉज तीन को लागू करने पर तत्काल रोक लगा दी है, जिसमें पर्यटन और इको-टूरिज्म गतिविधियां शामिल हैं। उधर जैन महासंघ के प्रतिनिधियों ने कहा कि वे केंद्र के फैसले का स्वागत करते हैं और साथ ही मांग करते हैं कि झारखंड सरकार इसे एक पवित्र स्थान के रूप में नामित करे और इसे समुदाय को सौंप दे।