Year Ender 2022 Series : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी वार्षिकी 2022

तमाम कड़वी-मीठी यादों के साथ साल 2022 ख़त्म हो चुका है। नया साल 2023, नई उम्मीद और नई आशाओं के साथ शुरू हो चुका है। लेकिन अगर साल 2022 के पन्नों को पलट कर देखेंगे, तो कई ऐसी घटनाएं हुईं हैं जिनका जुड़ाव हमारे आपके जीवन से कहीं न कहीं ज़रूर रहा।

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हवाना सिंड्रोम

साल की शुरुआत में हवाना सिंड्रोम नाम की एक बीमारी आशा चर्चा में रही। दरअसल अमेरिकी खुफिया एजेंसी का एक अधिकारी भारत आया था जो कि बीमार पड़ गया था। तो डॉक्टरों ने अंदेशा जताया था कि उसे हवाना सिंड्रोम हो गया है। दरअसल साल 2016 में क्यूबा की राजधानी हवाना में तैनात USA के राजनयिकों और अन्य कर्मचारियों ने अजीब सी आवाज़ें सुनाई देने तथा शारीरिक संवेदनाओं के बाद इस बीमारी को महसूस किया था। इस बीमारी के लक्षणों में मिचली, तेज सिरदर्द, थकान, चक्कर आना, नींद की समस्या आदि शामिल हैं। इसे ही हवाना सिंड्रोम कहा जाने लगा। डॉक्टर और वैज्ञानिक इसकी वजहों का पता लगाने में जुटे हैं, लेकिन किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं। पिछले साल अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की एक रिपोर्ट में हवाना सिंड्रोम का संभावी कारण निर्देशित माइक्रोवेव विकिरण को बताया गया है, लेकिन कुछ विशेषज्ञ अभी भी इससे अलग मत जता रहे हैं। बहरहाल मामला अभी भी और अधिक शोध का विषय है।

कवच तकनीक

बीते साल मार्च महीने में रेलवे की कवच तकनीकी का ट्रायल किया गया था और बाद में इस तकनीकी को सर्वाधिक व्यस्त रेल मार्गों पर लगाने की मंजूरी दे दी गयी है। इस तकनीकी के पीछे का उद्देश्य ट्रेनों की टक्कर को रोकना है, जिससे जान-माल की हानि कम की जा सके। ‘कवच’ भारतीय रेलवे द्वारा विकसित स्वचालित ट्रेन टक्कर रोधी प्रणाली है। ये एक स्वदेशी रूप से विकसित प्रणाली है जो ट्रेनों के बीच टकराव को रोकती है। इसे Train Collision Avoidance System (TCAS) के नाम से भी जाना जाता है। कवच प्रणाली स्टेशन मास्टर और लोको-पायलट को आपात स्थिति के दौरान एक दूसरे के साथ प्रभावी ढंग से संवाद करने की व्यवस्था प्रदान करती है। इसके माध्यम से 'कवच' प्रणाली स्वचालित रूप से ब्रेक लगाने में सक्षम होगा।

5जी तकनीक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 अक्टूबर 2022 को नई दिल्ली में इंडिया मोबाइल कांग्रेस के छठे एडिशन में आधिकारिक तौर पर भारत में 5G को लॉन्च किया। बता दें कि समय के साथ टेलीकॉम या वायरलेस इंडस्ट्री अपने इंफ्रास्ट्र्क्चर में सुधार करती रहती है। पहले 2G था … फिर 3G आया … उसके बाद 4G और अब बात चल रही है 5G की। यह एक तरह से नेटवर्क को अपग्रेड करने की प्रक्रिया होती है जिसमें सबसे बड़ा अंतर स्पीड का होता है। 4G में अधिकतम स्पीड 1000 MBPS हो सकती है, जबकि 5G में यही स्पीड 20000 MBPS तक जा सकती है। स्पेक्ट्रम में जितनी ज्यादा फ्रीक्वेंसी होती है नेटवर्क सेवा उतनी ही तेज होती है। इस तकनीक से प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत होने की उम्मीद है।

ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी

भारत सरकार ने फरवरी 2022 में ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी (हरित हाइड्रोजन नीति) की घोषणा की। इस नीति के तहत वर्ष 2030 तक पचास लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। हाइड्रोजन उत्पादन के लिए कम कार्बन उत्सर्जन वाली तकनीकों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। आपको बता दें कि हाइड्रोजन ईंधन, ऑक्सीजन के साथ जलने पर ‘शून्य-उत्सर्जन’ करता है। हाइड्रोजन ईंधन के उपयोग से उत्सर्जित होने वाला एकमात्र उप-उत्पाद ‘पानी’ होता है। इसीलिए ये ईंधन 100 प्रतिशत स्वच्छ माना जाता है। इसका उपयोग ईंधन सेलों अथवा आंतरिक दहन इंजनों में किया जा सकता है। खास बात ये है कि यह ब्रह्मांड में पाया जाने वाला सबसे प्रचुर तत्व है। सूर्य और अन्य तारे, व्यापक रूप से हाइड्रोजन से निर्मित होते हैं। हालांकि हमें ये भी ध्यान देना होगा कि ईंधन के रूप में और उद्योगों में हाइड्रोजन के व्यावसायिक उपयोग के लिए, हाइड्रोजन के उत्पादन, भंडारण, परिवहन और मांग निर्माण के लिए अनुसंधान और विकास में भारी निवेश की ज़रूरत है।

लंपी स्किन डिजीज़

बीते साल भारत के कुछ राज्यों में मवेशियों में गाँठदार त्वचा रोग यानी ‘लंपी स्किन डिजीज़’ के संक्रमण के मामले सामने आए थे। ज्यादातर मामले राजस्थान और गुजरात से थे। लंपी वायरस कैप्रिपॉक्स फैमिली का वायरस है। गोट पॉक्स और शिप पॉक्स की तरह ही मवेशियों में यह लंपी स्किन डिज़ीज़ के नाम से बीमारी फैलाता है। ये बीमारी काटने वाली मक्खियों, मच्छरों, जूं, दूषित दाने और पानी से फैलता है। यह एक संक्रामक बीमारी है जो संक्रमित जानवर के सीधे संपर्क में आने से दूसरे जानवर को भी हो जाता है। राहत की बात यह है कि ये रोग पशुओं से इंसानों में नहीं फैलता है यानी यह एक जूनोटिक बीमारी नहीं है। इस बीमारी के लक्षण की बात करें तो इसमें जानवरों के शरीर का तापमान काफी बढ़ जाता है और उन्हें भूख नहीं लगती है। उनके पूरे शरीर पर जगह-जगह गांठ बन जाते हैं।

भारत का पहला लिथियम सेल मैन्युफैक्चरिंग प्लांट

सितम्बर 2022 में भारत का पहला लिथियम सेल मैन्युफैक्चरिंग प्लांट आंध्र प्रदेश के तिरुपति में बनाया गया। इस प्लांट की रोजाना की क्षमता 270 मेगावाट की है और यह 10 एम्पीयर प्रति घंटे की क्षमता वाले 20,000 सेल का उत्पादन कर सकता है और यह क्षमता भारत की मौजूदा जरूरत का करीब 60 प्रतिशत है। इन सेल का इस्तेमाल पावर बैंक में होता है। अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम जैसे मोबाइल फोन, ईयर फ़ोन और स्मार्टवॉच के सेल भी यहां तैयार किए जाएंगे। भारत अभी चीन, दक्षिण-कोरिया, वियतनाम और हांगकांग से लिथियम-आयन सेल आयात करता है। इस प्लांट के बनने से आयात में कमी आएगी।

फ्लेक्स फ्यूल

भारत सरकार आजकल वाहन निर्माताओं पर फ्लेक्स फ्यूल से चलने वाले वाहनों को बनाने के लिए जोर दे रही है। इससे तीन फायदे होंगे - सबसे पहला ये कि फ्लेक्स फ्यूल से वायु प्रदूषण कम होगा, दूसरा फ्लेक्स फ्यूल, मौजूदा ईंधन यानी पेट्रोल और डीजल की कीमत के मुकाबले सस्ते दाम पर मिलेगा और तीसरा इससे कच्चे तेल के आयात में कमी आएगी। बता दें कि जब पेट्रोल में इथेनॉल, गैसोलीन या मेथनॉल को मिलाकर नया ईंधन बनाया जाता है तो इसे ही फ्लेक्स फ्यूल कहते हैं। इसको अल्कोहल बेस फ्यूल भी कहा जाता है। इसे बनाने में गन्ने, मक्के और दूसरे एग्री वेस्ट उत्पादों का प्रयोग जाता है। अब चूँकि भारत प्रमुख गन्ना उत्पादक देश है, इसलिए ऐसे ईंधन को बड़े स्तर पर बनाने में सामग्री की परेशानी नहीं आएगी। इसी बात के चलते फ्लेक्स फ्यूल को भविष्य के एक विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।

ह्यूमन पेपिलोमा वायरस CERVAVAC

साल 2022 में सर्वाइकल कैंसर के इलाज के लिए वैज्ञानिक रूप से बनाई गई भारत की पहली एचपीवी वैक्सीन का काम पूरा हो गया। बता दें कि गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर यानी सर्वाइकल कैंसर तब होता है जब गर्भाशय ग्रीवा (प्रवेश द्वार) के अस्तर में कोशिकाएं असामान्य रूप से विकसित होने लगती हैं। ये निचले गर्भाशय की गर्दन या संकीर्ण हिस्सा होता है। इसे आम बोलचाल की भाषा में बच्चेदानी का कैंसर भी कहा जाता है। वैसे तो आमतौर पर सर्वाइकल कैंसर केवल महिलाओं को होता है, लेकिन ये पुरुषों को भी हो सकता है। यह बीमारी होने पर जननांग में संक्रमण हो जाता है। अगर समय पर उसकी पहचान हो गई तो उसका इलाज किया जा सकता है, लेकिन देर होने पर या संक्रमण फैलने पर इससे मौत हो सकती है। सर्वाइकल कैंसर के लगभग सभी मामले ह्यूमन पैपीलोमावायरस (HPV) की वजह से होते हैं। ये एक आम वायरस है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संभोग के दौरान फैल सकता है। सर्वाइकल कैंसर के मामलों में दुनिया भर में भारत का पांचवां स्थान है।

रॉकेट री-एंट्री

दिसंबर 2022 में आउटर स्पेस इंस्टीट्यूट ने एक खुला पत्र प्रकाशित किया है। इस पात्र पर 140 से अधिक विशेषज्ञों और गणमान्य व्यक्तियों ने हस्ताक्षर किये थे। दरअसल इसमें विभिन्न राष्ट्रों और बहुपक्षीय संस्थानों से रॉकेट के अनकंट्रोलड री-एंट्री को प्रतिबंधित करने का आह्वान किया गया है। बता दें कि जब किसी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है तो ज़्यादातर रॉकेट पृथ्वी की कक्षा में पहुँचने से पहले अपने सारे पुर्जे अलग कर देते हैं और ऑर्बिट में केवल पेलोड ही प्रवेश करता है। अब जो पुर्जे राकेट से अलग होते हैं वो वापस पृथ्वी पर आने लगते हैं। इनमें से ज़्यादातर तो रॉकेट के छोटे टुकड़े होते हैं और पृथ्वी के वायुमंडल में पहुँचने से पहले ही जलकर राख हो जाते हैं, लेकिन कुछ बड़े टुकड़े होते हैं जो पृथ्वी पर वापस आ जाते हैं और ये निश्चित नहीं होता कि ये टुकड़े पृथ्वी के धरातल पर कहाँ गिरेंगे। ये टुकड़े अपने भार, हवा की गति और पर्टिकुलर कोण के आधार पर पृथ्वी की सतह से टकराते हैं जिसे हम अनियंत्रित प्रवेश याने uncontrolled reentry कहते हैं। ज़्यादातर ये टुकड़े समुद्र या महासागर में ही गिरते हैं, लेकिन कभी-कभी ये बिना मार्गदर्शन के ये ऐसी जगहों पर गिर जाते हैं जहाँ जान-माल का बहुत ज़्यादा नुकसान हो जाता है। इसलिए इस खुले पत्र पर OSI ने विभिन्न देशों से हस्ताक्षर करवाए हैं जिससे सभी अंतरिक्ष एजेंसी राकेट के टुकड़ों के पुनः प्रवेश को नियंत्रित करें और उनके टुकड़े किसी सुरक्षित जगह पर गिरें, जिससे जान-माल को कम से कम नुकसान पहुंचे।

स्टेम सेल ट्रांसप्लांट

स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की तकनीकी पिछले कुछ सालों से लगातार चर्चा में है और बीते साल भी यह सुर्ख़ियों में रहा। दरअसल अमेरिका में एचआईवी पीड़ित एक महिला को स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के माध्यम से ठीक किया गया। अभी तक एचआईवी को लाईलाज माना जाता था, लेकिन इसके बाद से एड्स के उपचार को लेकर वैज्ञानिकों में एक उम्मीद जगी है। दरअसल स्टेम कोशिका या मूल कोशिका ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग को विकसित करने की क्षमता होती है। इसके साथ ही ये शरीर की दूसरी कोशिका के रूप में भी ख़ुद को ढाल सकती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इन कोशिकाओं को शरीर की किसी भी कोशिका की मरम्मत के लिए प्रयोग किया जा सकता है। कोशिकाओं की बीमारियों के इलाज के लिए इन्हें लैब में भी विकसित किया जा सकता है। ये कोशिकाएं बोनमैरो, चर्बी, ब्लड, डेंटल पल्प इत्यादि चीजों मे पाए जाते हैं, जिसे निकालकर डैमेज एरिया वाले सेल्स की जगह ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है। इसे ही स्टेम सेल ट्रांसप्लांट कहते हैं।

स्टारलिंक सैटेलाइट

अक्सर आसमान में चमकती हुई रेलगाड़ी की तरह दिखने वाली स्टारलिंक सैटेलाइट स्पेसएक्स कम्पनी द्वारा लांच किये गए सैटेलाइटो का एक ग्रुप है। इसके द्वारा विश्व के 40 देशों को इंटरनेट की सुविधा दी जा रही है। रूस से युद्ध के दौरान यूक्रेन ने भी स्पेसएक्स की इस सुविधा का फायदा उठाया है। Starlink दुनिया भर में हाई-स्पीड, लो-लेटेंसी ब्रॉडबैंड इंटरनेट प्रदान करता है। इस सैटेलाइट के माध्यम से ऐसी जगह भी इंटरनेट की सेवा प्रदान करने का दावा किया जा रहा है जो पृथ्वी के किसी ऐसे छोर पर हैं जहां फाइबर इंटरनेट नहीं पहुँच सकता है।

आयन बैटरी और इलेक्ट्रिक वाहन दुर्घटना

बीते साल भारत में कई इलेक्ट्रिक वाहन आग से दुर्घटनाग्रस्त हो गए जिसके चलते कई लोगों की मृत्यु हो गयी। मामले का संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहन में आग से होने वाली दुर्घटना की जाँच के लिए एक पैनल गठित किया था। दरअसल हुआ ये है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते इलेक्ट्रिक वाहन बनाने पर लगातार जोर दिया जा रहा है और साथ ही पिछले एक दशक में लिथियम-आयन बैटरी बनाने की लागत में भी कमी आयी है। इस कारण इलेक्ट्रिक वाहन बाजार में बढ़ रहे हैं। हालांकि, ली-आयन बैटरी को उचित मानकों के अनुसार बनने में एक वर्ष से अधिक का समय लगता है और चलन के चक्कर में वाहन और बैटरी बनाने वाली कंपनियों ने सारे मानक को ताक पर रख दिए हैं। इसके चलते इलेक्ट्रिक वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं।

ब्लैक-होल

मई 2022 में वैज्ञानिकों ने पहली बार आकाशगंगा के केंद्र में स्थित ब्लैक होल की तस्वीर जारी की है। इस ब्लैकहोल का नाम सैजिटेरियस ए है जो हमारे सूरज के द्रव्यमान से चालीस लाख गुना बड़ा है। ब्लैक होल की बात करें तो यह ब्रह्माण्ड का वह अंधकारमय क्षेत्र है जहाँ गुरुत्वाकर्षण बल का खिंचाव इतना मजबूत होता है कि यह प्रकाश को भी अवशोषित कर लेता है।

'एमपॉक्स'

इस साल की शुरुआत में जब मंकीपॉक्स बीमारी का प्रकोप बढ़ा, तो कई जगहों पर इसके लिए नस्लवादी और आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया। जिसकी वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंकीपॉक्स का नाम बदलकर 'एमपॉक्स' (mpox) कर दिया। मंकीपॉक्स एक दुर्लभ, वायरल जूनोटिक बीमारी है जिसमें चेचक के समान लक्षण प्रदर्शित होते हैं। मंकीपॉक्स के कारण होने वाला बुखार, अस्वस्थता और सिरदर्द आमतौर पर चिकन पॉक्स के संक्रमण की तुलना में अधिक गंभीर होता है। रोग के प्रारंभिक चरण में मंकीपॉक्स के कारण लिम्फ ग्रंथि (Lymph Gland) यानी आपके गले के दोनों ओर सूजन आ जाती है और चेहरे, हथेलियों, तलवों, आंखों, मुंह, गले, जांघ और जननांग जैसे जगहों पर दाने या छाले भी हो जाते हैं।

भारत का पहला जैव डाटा सेंटर

जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) के सहयोग से क्षेत्रीय जैवप्रौद्योगिकी केंद्र (RCB) फरीदाबाद में, इंडियन बायोलॉजिकल डाटा सेंटर (IBDC) की स्थापना की गई है। यह भारत का पहला जैव डाटा सेंटर है। देश में इसके पहले लाइफ साइंस डाटा स्टोर सेण्टर न होने के कारण यूरोप और अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था। 100 करोड़ की लागत से बनाए गए, इस लाइफ साइंस डाटा सेंटर के पास 4 पेटाबाइट तक स्टोरेज रखने की क्षमता है और ये उच्च क्षमता वाली सुपर कंप्यूटिंग सुविधा 'ब्रह्म' से लैस है। इस सेंटर के जरिए आने वाले समय में कोरोना जैसी बीमारियों की पहचान और रिसर्च में मदद मिलेगी।

भारत का पहला निजी रॉकेट 'विक्रम-एस'

नवंबर 2022 देश की पहली प्राइवेट स्पेस कंपनी अंतरिक्ष स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस का रॉकेट Vikram-S सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। इसे लॉन्च करने में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने भी मदद की थी। इस मिशन का नाम 'प्रारंभ' रखा गया है। विक्रम-एस रॉकेट ने श्रीहरिकोटा में ISRO के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी। बता दें कि विक्रम-एस ठोस ईंधन वाले प्रणोदन, अत्याधुनिक एवियोनिक्स और सभी कार्बन फाइबर कोर संरचना द्वारा संचालित है। रॉकेट का नाम विक्रम-एस प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक और इसरो के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है।

दुनिया का पहला क्लोन आर्कटिक वुल्फ

आर्कटिक वृक (Arctic wolf) या आर्कटिक भेड़िया को श्वेत वृक (White wolf) और ध्रुवीय वृक (polar wolf) भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम कैनिस लूपस आर्कटोस (Canis lupus arctos) है। अभी वर्तमान में आर्कटिक भेड़िये विलुप्त होने की कगार पर हैं। इन्हें बचाने के लिए तमाम कोशिशें की जा रही हैं। इसी क्रम में पिछले साल चीन ने पहली बार आर्कटिक भेड़ियों की क्लोनिंग करके नया भेड़िया पैदा किया है। इस आर्कटिक भेड़िये का जन्म 10 जून 2022 को हुआ था और इसका नाम माया रखा गया है। यह दुनिया में अपनी तरह का पहला मामला है। इसे बनाने के लिए डोनर सेल कनाडा के एक मादा आर्कटिक भेड़िये की त्वचा से लिया गया था। इसके बाद अंडे को एक मादा कुतिया से लिया गया। फिर इसे एक बीगल ब्रीड की कुतिया के गर्भ में सरोगेट कराया गया।

विश्व की पहली इंट्रानेजल वैक्सीन

साल 2022 में भारत की बायोटेक्नोलॉजी कंपनी भारत बायोटेक ने कोविड-19 की नयी वैक्सीन INNCOVAC को लांच किया है। इस वैक्सीन को केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने मंज़ूरी दे दी है। यह दुनिया का पहला इंट्रा-नेज़ल टीका है जिसे प्राइमरी सीरीज़ और बूस्टर खुराक दोनों के लिए मंज़ूरी मिल गयी है। यह एक एडिनोवायरस वेक्टर वैक्सीन है।

नोबेल पुरस्कार

चलते-चलते इस वर्ष के नोबेल पुरस्कार पर भी चर्चा कर लेते हैं। स्वीडन के स्वांते पाबो को चिकित्सा के क्षेत्र में नई खोज के लिए चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें यह पुरस्कार मानवों के विलुप्त पूर्वजों और मानव विकास की आनुवांशिकी (जीनोम) से जुड़ी खोजों के लिए दिया गया है। भौतिकी के लिए नोबेल पुरस्कार वाले वैज्ञानिक हैं-एलेन एस्पेक्ट, जॉन एफ क्लॉजर और एंटोन ज़िलिंगर। तीनों वैज्ञानिकों को ‘क्वांटम मेकैनिक्स’ के क्षेत्र में कार्य करने के लिए ये पुरस्कार दिया गया। रसायन में दिया जाने वाला नोबेल पुरस्कार इस वर्ष ‘संयुक्त राज्य अमेरिका के कैरोलिन बर्टोज़ी एवं बैरी शार्पलेस तथा डेनमार्क के मोर्टन मेल्डाल को प्रदान किया गया है। इन्हें यह पुरस्कार ‘क्लिक केमिस्ट्री और बायोऑर्थोगोनल केमिस्ट्री के विकास’ के लिये दिया गया है।