विंडफॉल टैक्स (Windfall Tax) : डेली करेंट अफेयर्स

पिछले साल जुलाई में भारत सरकार ने भारत के क्रूड ऑयल के उत्पादकों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों की तेजी के कारण हो रहे भारी मुनाफे को देखते हुए विंडफॉल टैक्स लगाया था। सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया था, क्योंकि प्राइवेट तेल उत्पादक कंपनियां देश के भीतर सस्ता पेट्रोल-डीजल और एटीएफ बेचने की बजाय अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक्सपोर्ट करके भारी मुनाफा कमाने पर ज्यादा जोर देने लगी थीं, जबकि भारत को खुद अपनी जरूरतों के लिए बड़े पैमाने पर तेल का आयात करना पड़ता है।

सरकार द्वारा विंडफॉल टैक्स लगाने के बाद कई तेल कंपनियों ने इसे हटाने अथवा कम करने का अनुरोध किया था। बहरहाल उस वक्त सरकार ने इस टैक्स में कोई कटौती नहीं की थी, लेकिन अभी हाल ही में इसने घरेलू स्तर पर उत्पादित कच्चे तेल पर विंडफॉल टैक्स घटाने का निर्णय लिया है। दरअसल अभी मौजूदा वक्त में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट देखने को मिली है जिसकी वजह से सरकार ने यह फैसला लिया है। इसके अलावा डीज़ल और एविएशन टरबाइन फ्यूल के भी निर्यात पर लगने वाले विंडफॉल टैक्स की दर में कमी की गयी है।

गौरतलब है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष की वजह से दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी से उछाल आया था जिसके बाद यूनाइटेड नेशंस के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने दुनियाभर के देशों से इस अत्यधिक मुनाफे पर कर लगाने का अनुरोध किया था। उनकी सलाह पर दुनियाभर की सरकारों द्वारा कच्चे तेल पर विंडफॉल टैक्स लगाया गया था।

विंडफॉल टैक्स उन उद्योगों या कंपनियों के ऊपर लगाया जाता है जिनका मुनाफा कुछ खास परिस्थितियों में अप्रत्याशित रूप से बहुत अधिक बढ़ जाता है। इस अप्रत्याशित लाभ को बिना किसी अतिरिक्त प्रयास या व्यय के बावजूद होने वाले लाभ के रूप में परिभाषित किया जाता है। ये ऐसे लाभ होते हैं जिन्हें किसी फर्म के द्वारा किसी सक्रिय निवेश रणनीति या व्यवसाय विस्तार के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। भारत में विंडफॉल टैक्स की समीक्षा हर 15 दिन में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड की ओर से की जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि विंडफॉल टैक्स अस्थाई होता है।

विंडफॉल टैक्स से संबंधित कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं जिन पर नज़र डालना ज़रूरी है। जिसमें सबसे पहला ये कि ये टैक्स अप्रत्याशित और पूर्वव्यापी रूप में लगाया जाता है, जिससे बाज़ार में अनिश्चितता पैदा होती है। दूसरा, इस टैक्स की प्रकृति अल्पावधि में थोड़ी लोकलुभावन सी लगती है और यह राजनीति से प्रेरित भी हो सकती है। तीसरा, जब कोई निवेशक कहीं निवेश करने का कोई फैसला लेता है तो इस दौरान वह संभावित टैक्सेस का भी आकलन करता है। लेकिन जब उसे ऐसे अप्रत्याशित करों का अंदाजा नहीं होगा तो निवेशक निवेश करने से बचना चाहेंगे। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि यह कर किस पर लगाया जाना चाहिये …. यानी क्या एक निश्चित सीमा से नीचे के राजस्व या लाभ वाले उत्पादकों को छूट दी जानी चाहिये अथवा नहीं। यह तमाम ऐसे बिंदु है जिन पर गौर करना जरूरी है।