दुनिया का पहला मधुमक्खियों का टीका (World’s First Vaccine for Honeybees) : डेली करेंट अफेयर्स

कोविड-19 की महामारी के बाद से लोगों का आयुर्वेद और जैविक संसाधनों पर भरोसा पहले की तुलना में ज्यादा बढ़ा है। काढ़ा, शहद और गिलोय जैसे वस्तुओं का डिमांड बढ़ा है। ऐसे में इन सभी सामानों के उत्पादक देश इनके वैश्विक निवेश को बढ़ाने की जुगत में लगे हैं। लेकिन शहद के प्रमुख उत्पादक और निर्यातक देशों में से एक अमेरिका में शहद उत्पादन में कुछ दिक्कतें आ रही थीं। दरअसल वहां पर अमेरिकी फुल ब्रूड रोग मधुमक्खियों को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा था। इसीलिए वहां पर यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (USDA) ने मधुमक्खियों के लिए दुनिया के पहले टीके के इस्तेमाल को सशर्त मंजूरी दी है। इस टीके से अमेरिकन फुल ब्रूड डिजीज को रोकने में मदद मिलेगी।

USDA के अनुसार, अमेरिका ने 2006 से मधुमक्खी कालोनियों में वार्षिक कमी देखी है। मधुमक्खियां जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, लेकिन बदलती जलवायु, प्राकृतिक परिवर्तनों और कीटनाशकों का इन मधुमक्खियों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसी तरह का एक नकारात्मक प्रभाव अमेरिकन फुल ब्रूड यानी AFB संक्रामक रोग भी है। जिससे मधुमक्खियों के लार्वा बुरी तरह प्रभावित होते हैं। AFB बीजाणु बनाने वाले जीवाणु पेनीबैसिलस लार्वा के कारण होता है। इससे संक्रमित बच्चे आमतौर पर प्री-प्यूपल या प्यूपा अवस्था में ही मर जाते हैं। यह मधुमखियों की सभी प्रकार की कॉलोनी को संक्रमित कर सकते हैं।

एक वार्षिक सर्वे के मुताबिक, यहाँ के मधुमक्खी पालकों ने पिछले एक साल में मधुमक्खी कॉलोनियों के 40 प्रतिशत से अधिक हिस्से को बिमारियों के चलते गवां दिया। यह पिछले तेरह सालों में होने वाला सबसे बड़ा नुकसान था। बुरी बात ये थी कि इस संक्रामक रोग का कोई इलाज नज़र नहीं आ रहा था। जिसके चलते एकमात्र उपाय बचता था कि संक्रमित मधुमक्खियों की कॉलोनी को, छत्तों को जलाया जाये और इनके आस-पास की कॉलोनियों को एंटीबायोटिक दवाओं के इलाज के साथ किया जाये, लेकिन पेनीबैसिलस लार्वा को फैलने से रोकने का कोई विकल्प नहीं था। इसी समस्या के समाधान के तौर पर यह वैक्सीन लायी गयी है।

वैक्सीन तकनीक कैसे काम करेगी?

इस वैक्सीन को क्वीन कैंडी में मिलाया जाता है। यही क्वीन कैंडी रानी मधुमक्खी और वर्कर मधुमक्खियों का भोजन होती है। यह पचने के बाद वर्कर मधुमक्खियां की रॉयल जेली बनाने वाली ग्रंथियों में ट्रान्सफर हो जाती है। इसके बाद वर्कर मधुमक्खियां वैक्सीन युक्त रॉयल जेली रानी को खिलाती हैं। रानी रॉयल जेली को पचा लेती है और वैक्सीन उसके अंडाशय में ट्रांसफर हो जाती है। फिर रानी को छत्ते में छोड़ दिया जाता है। इसके बाद वैक्सीन विकसित हो रहे अंडों में ट्रांसफर हो जाती है और जैसे-जैसे वे निकलते हैं, संक्रमण के प्रति अधिक immune होते जाते हैं। इस टीके को बायोटेक कंपनी डालन एनिमल हेल्थ द्वारा विकसित किया गया है। कंपनी ने दावा किया कि इम्यून प्राइमिंग के टेस्ट में रानी की फिटनेस और शहद पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं देखा गया है।

भारत में शहद उत्पादन से जुड़े फैक्ट्स की बात करें तो साल 2022 के आंकड़ों के मुताबिक में भारत शहद उत्पादन में दुनिया में आठवें स्थान पर आता है। शहद उत्पादन को बढ़ाने के लिए देश में "मधुक्रांति" और "राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और मधु मिशन" जैसे क़दम उठाये गए हैं।